कभी कभी न जाने कैसे
क्या से क्या हो जाता है
जब मुश्किल हो जाता है
सही और गलत में फ़र्क करना
और कोई नामालूम शक
उठाता है सिर जब तब
डराता है रात बिरात
सुनसान सन्नाटे में
बजने लगता है गजर सा
घनघनाटा, टनटनाता
उकेर जाता है जाने
कैसे कैसे दुस्वप्न मनभित्तियों पर
शांत झील में डाल देता है खलल
आसमान धूसर हो जाता है/ तब
सूरज धुंधला जाता है
बुझने लगती हैं
तारों की भी रोशनियां
हरियाली भी देने लगती है ताप
सब कुछ जंगल हो जाता है!!
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क्या से क्या हो जाता है
जब मुश्किल हो जाता है
सही और गलत में फ़र्क करना
और कोई नामालूम शक
उठाता है सिर जब तब
डराता है रात बिरात
सुनसान सन्नाटे में
बजने लगता है गजर सा
घनघनाटा, टनटनाता
उकेर जाता है जाने
कैसे कैसे दुस्वप्न मनभित्तियों पर
शांत झील में डाल देता है खलल
आसमान धूसर हो जाता है/ तब
सूरज धुंधला जाता है
बुझने लगती हैं
तारों की भी रोशनियां
हरियाली भी देने लगती है ताप
सब कुछ जंगल हो जाता है!!
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10 comments:
बहुत गहन रचना.
behtareen bhav ... bahut khoobsurat rachna
हाँ,कभी कभी ही नहीं,मेरे साथ तो ऐसा रोज ही होता है.आपने मेरी भावनाओं को सुन्दर उपमाओं से रचित जुबां दे दी.
मनोभावों की गहन अभिव्यक्ति, अच्छी लगी रचना . आभार
गूढ अर्थ लिए अच्छी भावाभिव्यक्ति।
भावना प्रधान,सुन्दर रचना.
कुँवर कुसुमेश
ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.co
कभी कभी न जाने कैसे
क्या से क्या हो जाता है
जब मुश्किल हो जाता है
सही और गलत में फ़र्क करना
और कोई नामालूम शक
उठाता है सिर जब तब
डराता है रात बिरात...
Quite often it happens. We all go through such phases and conflicts.
Beautiful creation.
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gud job..keep going!
हरियाली के ताप देने का विचार...बहुत बढ़िया कल्पना
आप सभों के स्नेहाशीष और अमूल्य प्रतिक्रियाओं के लिए बेहद आभारी हूं जो मेरी लेखनी को नई उर्जा और बल प्रदान करती है. आशा है कि आगे भी आप सभी का स्नेहाशीष सहयोग और मार्गदर्शन मिलता रहेगा. आभार.
सादर
डोरोथी.
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