बचे रहेंगे कुछ ठूंठ, कुछ झाड़ियां
और मुठठी भर पेड़
जिन पर होंगे
कुछ खाली घोंसलों के ढेर
जिन्हें छोड़ कर
कब के उड़ चुके होंगे
पंछियों के दल
जंगलों के उजड़ने से पहले
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पेड़ पंछियों और पुरनियों के किस्सों की
मद्धिम तान गूंजेगी कुछ दिन
जंगल के बाशिंदों के बीच
जो छूटे रह गए
या बिछुड़ गए भगदड़ के शोर में
और जो ढूंढ रहे हैं
बरसों से अपना घर
टूटती हुई सांसो और
खोए हुए सपनों के मलबों के बीच
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पर
यकीन है इतना कि
कभी तो दिन बदलेंगे
और जंगल में फ़िर से
उग आएंगे
सदाबहार पेड़ों के झुंड के झुंड
और देर होने से पहले
और सब कुछ खत्म होने से पहले
लौटेंगे पंछियों के दल के दल
अपने अपने बसेरों में
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