वेटिग फ़ार गोदो बनाम इंतजार का सफ़रनामा
हम किसलिए जीते हैं.... किसलिए.... हर वक्त किसका इंतजार रहता है नहीं मालूम.... और समूची जिंदगी इसी इंतजार में निकल जाती है. कभी लगता है जिंदगी कुछ और नहीं सिर्फ़ इसी इंतजार का दूसरा नाम है.... शायद " वेटिग फ़ार गोदो " के पात्रों की तरह हम सब भी न जाने सारी जिंदगी किसका इंतजार करते रहते है जो आने का वादा करके भी कभी नहीं आता.... और पूरी की पूरी जिदगी इसी बेतुके इंतजार में बीत जाती है.... पर इस इंतजार से मुक्ति भी तो नहीं है.... नहीं तो जीना कितना आसान हो जाता....
जो सामने है उसी को सच मान लेना.... जी लेना सोचे समझे विचारे बगैर.... सचमुच कई बार लोगों से ईषर्या होती है जिनकी भरी पूरी जिंदगियों में ऐसी बेतुकी मूर्खताओं के लिए कोई जगह नहीं होती.... जहां कोई तलाश, कोई भटकन/ यात्रा का नामोनिशान तक नहीं.... जिन जिंदगियों की नीच त्रासदी यही है कि इनमें कोई त्रासदी नहीं घटती.... न ही घटने की गुंजाईश हो शायद.... कौन जाने.... सुविधाओं/परेशानियों के परे कोई तलाश, कोई भटकन नहीं.... ?!
जो सामने है उसी को सच मान लेना.... जी लेना सोचे समझे विचारे बगैर.... सचमुच कई बार लोगों से ईषर्या होती है जिनकी भरी पूरी जिंदगियों में ऐसी बेतुकी मूर्खताओं के लिए कोई जगह नहीं होती.... जहां कोई तलाश, कोई भटकन/ यात्रा का नामोनिशान तक नहीं.... जिन जिंदगियों की नीच त्रासदी यही है कि इनमें कोई त्रासदी नहीं घटती.... न ही घटने की गुंजाईश हो शायद.... कौन जाने.... सुविधाओं/परेशानियों के परे कोई तलाश, कोई भटकन नहीं.... ?!
2 comments:
यह बेतुका सा इन्तजार,..अन्तहीन तलाश ..कभी न भर पाने वाला खाली पन ..यह हर संवेदनशील व्यक्ति की सच्चाई है पर इसे इतनी सशक्तता के साथ व्यक्त कर पाना ही तो एक खास बात है ।
रचना सराहने और उत्साहवर्धन एवं शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
आशा है आगे भी आपका स्नेह, सहयोग और मार्गदर्शन मिलता रहेगा.
सादर,
डोरोथी.
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