कभी कभी न जाने कैसे
क्या से क्या हो जाता है
जब मुश्किल हो जाता है
सही और गलत में फ़र्क करना
और कोई नामालूम शक
उठाता है सिर जब तब
डराता है रात बिरात
सुनसान सन्नाटे में
बजने लगता है गजर सा
घनघनाटा, टनटनाता
उकेर जाता है जाने
कैसे कैसे दुस्वप्न मनभित्तियों पर
शांत झील में डाल देता है खलल
आसमान धूसर हो जाता है/ तब
सूरज धुंधला जाता है
बुझने लगती हैं
तारों की भी रोशनियां
हरियाली भी देने लगती है ताप
सब कुछ जंगल हो जाता है!!
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