१.

धरती के अंधेरे सूने उजाड़ कोनों में खोई हुई/और
गहराईयों में सोई हुई असंख्य उम्मीदें/ देखती हैं
कितने ही सुंदर सपने/बदलते समयों का
पतझड़ के मौसम में/आने वाले वसंत का सपना
घटाटोप अंधेरी रातों में/किसी उजले भोर का सपना
और उन सपनों की सुगबुगाहट/ कभी कभी
चीरकर अंधेरो की कब्र/चली आती है
सतह के ऊपर, अपनी रोशनी की बरसात लिए
और एक नया गीत बनकर बरस जाती है.

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२.

आसमान से
बरसता है
रोशनी का दरिया
कतरा कतरा करके
धरती के सूने अंधेरे कोनों में
आहिस्ते आहिस्ते
अंदर तक रिसता हुआ
और अचानक ही
जगमगाने लगती है धरती
किसी बेशकीमती मणि सा...

टूटे थके और मुर्झाए जीवनों में भी
जो अंधेरों से घिरे बैठे है सदियों से
प्रवेश करता है वसंत
उम्मीदों और प्रेम की
ढेरों सौगात लिए
जिसकी झिलमिल रोशनी में
आरंभ करते है वे
अधेरे से उजाले तक का
एक नया सफ़र फ़िर से
एक नया गीत गाते हुए...

अपने टूटे पखों और
पतवारों को संभाले
देखते महसूसते
एक बार फ़िर से
अपने चारो ओर बरसते
नेह और उम्मीद की आशीषमय
बरखा के स्नेहिल स्पर्श से
पतझड़ को वसंत में बदलते हुए
और सपनों को हंसते मुस्कराते हुए...

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आप सभी को वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!!!!!!!!