tag:blogger.com,1999:blog-45314598717280079162024-02-20T13:09:24.347-08:00अग्निपाखीजीवन के संघर्षों के अग्निकुंड में जलते हुए अपनी ही राख से पुनर्जीवित होने का अनवरत सिलसिला....Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.comBlogger42125tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-65045141167177470862011-08-20T08:33:00.000-07:002011-08-20T08:35:59.872-07:00जिंदगी उम्मीद और सपने<div align="center">सपने भी तो
<br />टूटने और मिटने के बाद भी
<br />बसते हैं मन के
<br />सूने अंधेरे कोनों में
<br />उम्मीद के अंसख्य बीज लिए
<br />कि देंगे जन्म नए सपनों की
<br />अनगिन फ़सलों को
<br />और कि
<br />उन सपनों की रोशनी में
<br />कुछ पल और जी लेंगे
<br />क्योंकि सपने कभी मरते नहीं
<br />नए रंगो से लिखी
<br />नई इबारतें लिए
<br />प्रवेश करते हैं
<br />हमारी दुनियाओं में
<br />और रच बस जाते हैं
<br />श्वास और धड़कन में
<br />नई सुमधुर संगीत लहरियां बनकर
<br />उम्मीद की रोशनी को
<br />बुझने से बचाने के लिए
<br />हम भले हो चुके हों नाउम्मीद
<br />पर जिंदगी कभी उम्मीद नहीं खोती
<br />उम्मीद के हर कतरे में
<br />बसती है जिंदगी
<br />और जिंदगी के हर कतरे में
<br />बसते है सपने
<br />और हर सपने में
<br />छुपे रहते है
<br />उम्मीद के बीज
<br />जिनसे
<br />फ़िर से
<br />जन्मती और पनपती हैं
<br />जिंदगी उम्मीद और सपने
<br />...
<br />...</div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com57tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-14228640866310156672011-08-14T12:11:00.000-07:002011-08-14T12:15:08.398-07:00एक पाती आजादी के नाम<div align="center">यह मेरी पुरानी कविता "आजादी के नाम एक पाती" है जिसे मैंने पिछले साल अपने ब्लाग पर पोस्ट किया था. आज मैं फ़िर से अपनी इस कविता को आप सबके साथ साझा कर रही हूं...
<br />
<br /><strong>आजादी के नाम एक पाती</strong>
<br />
<br />मैं
<br />हवा हूं
<br />धूप हूं
<br />पानी हूं
<br />....
<br />
<br />गुदगुदाती हूं हवा बन
<br />अपनी उंगलियों से
<br />किसी बच्चे का
<br />कोमल सा गाल
<br />....
<br />
<br />छू लेती हूं फिर धूप बन
<br />अंधेरों से घिरे
<br />हर अनाम चेहरों को
<br />....
<br />
<br />टपक पड़ती हूं बूंदे बन
<br />फूलों पर, पत्तियों पर
<br />नन्हीं कोंपलों, अंकुरों पर
<br />....
<br />
<br />चाहती हूं
<br />....
<br />
<br />श्वास बनू मैं
<br />रक्त बन बहूं शिराओं में
<br />मुस्कान सी बिखर बिखर जाऊं
<br />....
<br />
<br />मैं
<br />हवा
<br />धूप
<br />पानी
<br />....
<br />
<br />मत रोको मुझे
<br />मैं रूकना नहीं चाहती
<br />मत बांटो मुझे
<br />मै बंटना भी नहीं चाहती
<br />मत बांधो मुझे
<br />मैं बंधना भी नहीं चाहती
<br />....
<br />
<br />मैं
<br />हवा
<br />धूप
<br />पानी
<br />....
<br />
<br />मेरा न रंग कोई
<br />न कोई रूप मेरा
<br />न कोई भाषा मेरी
<br />न कोई धर्म मेरा
<br />....
<br />
<br />मैं
<br />हवा
<br />धूप
<br />पानी
<br />....
<br />
<br />फिर क्यों बांध लेना चाहते हो
<br />मुझे क्यों तुल जाते हो बांटने को
<br />क्यों उठा देते हो हर जगह पर दीवारें
<br />क्यों बढ़कर बीच रास्ते में रोक लेते हो
<br />....
<br />
<br />मैं
<br />हवा
<br />धूप
<br />पानी
<br />....
<br />
<br />मैं स्वछंद निर्द्वन्द
<br />मैं निर्मल उजली
<br />मैं निर्भय शुचि
<br />....
<br />
<br />मैं
<br />हवा
<br />धूप
<br />पानी
<br />....
<br />
<br />परिचित, अपरिचित
<br />देश, विदेश
<br />हर सीमा के परे
<br />हर बंधन को तोड़
<br />बहती हूं / चलती हूं
<br />....
<br />
<br />मैं
<br />हवा
<br />धूप
<br />पानी
<br />....
<br />
<br />मत रोको मुझे
<br />मत बांधो मुझे
<br />मत बांटो मुझे
<br />....
<br />.... </div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com55tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-46104441607135969402011-08-03T08:10:00.000-07:002011-08-03T08:14:52.301-07:00नागफ़नी के फूल<div align="center">गमलों में जतन/ और<br />ढेरों दुलार से उगाए<br />गुलाब के फूल/ या<br />आर्किड के पुष्प<br />या/ फ़िर<br />उपवनों में<br />प्यार की छांव में<br />पनपते<br />डैफ़ोडिल/ ट्युलिप<br />की कतार!<br />.....<br /><br />इनसे<br />अक्सर कमतर<br />ही ठहरते हैं<br />तपते रेगिस्तानों में<br />खिलते<br />नागफ़नी के फूल!<br />जो<br />आस पास से/ गुजरती<br />हवा की नमी महसूस<br />और<br />तपते रेगिस्तान के<br />अंतर में दफ़्न<br />रीतते जाते<br />पानी की एक एक बूंद<br />सहेज<br />खिलते हैं<br />अल्हड़ लापरवाह<br />और उद्दंड से<br />और मुर्झा जाते हैं<br />बिन सराहे<br />....<br /><br />बिन कराहे<br />ढुलक जाते हैं<br />काल के गाल से<br />आंसू बन कर<br />धरती भी कराहती है<br />उन के मूक क्रंदन से<br />और बादल भी रोता है<br />अपनी बदनसीबी पर<br />....<br /><br />पर<br />नागफ़नी का फूल<br />उन की आहों/ और<br />आंसुओं को भी<br />सहेज लेता है<br />आशीष समझ कर<br />अपने ही भीतर<br />तभी / तो<br />उस के अंतर में<br />पलता है<br />नमी का समंदर<br />जो कभी कभी<br />मरहम बन<br />देता है<br />लोगों को<br />अपना शीतल स्पर्श<br />और/ रेगिस्तान में<br />खिलखिलाहट बन<br />गूंजता है<br />दूर तक<br />....<br /><br />नागफ़नी का फूल<br />मगर रोता है<br />अकेले ही<br />और/ हो जाता है विदा<br />एक दिन दुनिया से<br />बिना किसी शिकवे या<br />शिकायत के!!<br /><br />...<br />...</div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com51tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-57064037354371681792011-07-27T07:07:00.000-07:002011-07-27T07:16:11.292-07:00आज मेरी मां का जन्मदिन है<div align="center">मां को गुजरे कई साल बीत चुके हैं, पर फ़िर भी लगता है कि वो आज भी आस पास है. जीवन के हर पल में रची बसी और गुंथी उनकी यादें खुश्बू बन महकती रहती है आज भी... उन्हीं स्मृतियों के नाम कुछ पंक्तियां...<br /><br /><br /><strong>मां के जन्मदिन पर... </strong><br /><br />आंखों से भले हो ओझल<br />आज मां तू<br />पर आज भी<br />लगता है कि<br />यहीं कहीं<br />बहुत करीब है तू<br />तेरी परछाई के<br />एक कण से भी<br />जो मिले कही पर<br />तो संवर जाए<br />मन का उदास कोना<br />पर ढूंढे से भी तो<br />नहीं मिलती है<br />तुम्हारी कोई परछाई<br />...<br /><br />पर दिल में बसी<br />तेरी यादें<br />जब तब चली<br />आती है बाहर<br />समय के झीने से पर्दे<br />को चीरकर<br />और<br />अंधेरे सूने उदास<br />एवं खाली खाली से<br />इस जीवन में<br />फ़ैला जाती है<br />अपने प्रेम का<br />अदभुत उजास<br />जो<br />सूनी अंधेरी रातो में भी<br />बनकर ध्रुव तारा<br />ताकता है<br />एकटक अपलक<br />अपनी स्थिर<br />प्रदीप्त नेत्रों से<br />मेरा एक एक कदम<br />जैसे किया था<br />जीवन भर<br />उलझनों से बचाता<br />और रास्ता दिखाता<br />...<br /><br />आज भी<br />सपना बन<br />रोज ही<br />सहलाता है<br />मेरी बेचैन नींदों को<br />मां तेरा मृ्दुल कोमल स्पर्श<br />हर हार के बाद उठना<br />हर चोट के बाद हंसना<br />मां क्या क्या नहीं सिखाता है<br />तेरा निश्छल प्यार...<br />खुद को भूल<br />दूसरे के लिए जीना<br />खुद को बेमोल बेच देना<br />खामोश दुआ सी<br />सबके आसपास<br />बने रहना<br />हर बात को<br />आड़ और ढाल<br />बन झेलना<br />पर<br />अपने प्रियों तक<br />किसी आंच या<br />तूफ़ान को<br />टिकने या<br />ठहरने नहीं देना<br />अपनी आंचल की ओट में<br />समूची दुनिया को<br />सहेज के रखना<br />बिसराए जाने पर भी<br />सिर्फ़ आशीष बरसाते रहना<br />जिंदगी के कटु<br />कोलाहल में भी<br />हर वक्त किसी मद्धम<br />कोमल राग सा बजना<br />...<br /><br />तेरी यादों की खुश्बू<br />बसी रहे यूं ही<br />जीवन के अंत दिनों तक<br />हमारे इस घुटन भरे<br />असहज जीवन में<br />अब तो<br />बीतते है<br />मेरे हर दिन<br />तेरी परछाई बन<br />जीने की ख्वाहिश में<br />और मेरी हर रात<br />करती है इंतजार<br />तेरे मृ्दुल स्पर्श का<br />आज भी...</div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com50tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-29500990687634998432011-07-23T02:56:00.000-07:002011-07-23T03:06:36.619-07:00तूफ़ान का सपना<div align="center">अपनी अंतहीन यात्राओं में<br />यहां से वहां<br />इधर से उधर<br />गुजरते हुए<br />तूफ़ान देखता है कोई सपना<br />जाने<br />कहां ले जाता है<br />समेटकर सबको<br />उन सूखे पत्तों<br />और टूटे ख्वाबों को<br />शायद<br />किसी नई दुनिया में<br />किसी अनजान शहर<br />या फ़िर अनजान नगर में<br />...<br /><br />जहां<br />झरता है<br />चारो ओर<br />हर वक्त<br />सूखे पत्तों का चूरा<br />और<br />टूटे ख्वाबों का मलबा<br />...<br /><br />उस सूने उजाड़<br />नगर या शहर में<br />तूफ़ान<br />बहा ले आता है<br />अपने संग<br />घुटन भरी<br />श्वासों में<br />आसुओं में<br />छिपी नमी<br />जो बरसती है<br />बारिश की<br />भीनी भीनी<br />फ़ुहार बनकर<br />और बंजर जमीं में भी<br />बिछ जाती है<br />हरियाली की मखमली चादर<br />नवाकुरों कोपलों<br />और कलियों का<br />पालना बनकर<br /><br />...<br />...</div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com50tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-10657377579752224252011-03-19T23:47:00.000-07:002011-03-19T23:53:06.479-07:00होली की पोटली<div align="center">होली की पोटली<br />से झांकते<br />चटकीले रंगो की<br />झिलमिलाती आभा<br />से दमक उठे<br />जीवन का हर<br />सूना और उदास कोना<br />और झंकृत हो<br />नेह और उमंग का<br />जादुई संगीत<br />सब ओर<br />जीवन में गूजते<br />बेसुरे और जिद्दी<br />कर्कश धुनों को भी<br />अपने मधुर संगीत की<br />मखमली लय पर<br />थिरकने के लिए<br />मजबूर कर दे<br />मुर्झाए जीवनों को भी<br />नेह और अपनेपन के<br />चटकीले रगों से<br />सराबोर कर दे<br />नई उमंग और<br />उल्लास का<br />झिलमिल संसार<br />फ़ीके बदरंग जीवन को<br />फ़िर से<br />सतरंगी संसार<br />बना दे<br />सबके मनों को<br />नेह और अपनेपन के<br />अटूट बंधन में<br />सदा के लिए<br />कोमलता से बांध दे<br />...<br /><br /><strong><span style="color:#ff0000;">आप सभी को सपरिवार होली की ढेरों शुभकामनाएं</span></strong></div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com49tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-3595864536257989782011-02-08T01:25:00.000-08:002011-02-08T03:02:58.303-08:00वसंत का आना<div align="center"><strong>१.</strong><br /><br />धरती के अंधेरे सूने उजाड़ कोनों में खोई हुई/और<br />गहराईयों में सोई हुई असंख्य उम्मीदें/ देखती हैं<br />कितने ही सुंदर सपने/बदलते समयों का<br />पतझड़ के मौसम में/आने वाले वसंत का सपना<br />घटाटोप अंधेरी रातों में/किसी उजले भोर का सपना<br />और उन सपनों की सुगबुगाहट/ कभी कभी<br />चीरकर अंधेरो की कब्र/चली आती है<br />सतह के ऊपर, अपनी रोशनी की बरसात लिए<br />और एक नया गीत बनकर बरस जाती है.<br /><br />....<br /><br /><br /><strong>२.</strong><br /><br />आसमान से<br />बरसता है<br />रोशनी का दरिया<br />कतरा कतरा करके<br />धरती के सूने अंधेरे कोनों में<br />आहिस्ते आहिस्ते<br />अंदर तक रिसता हुआ<br />और अचानक ही<br />जगमगाने लगती है धरती<br />किसी बेशकीमती मणि सा...<br /><br />टूटे थके और मुर्झाए जीवनों में भी<br />जो अंधेरों से घिरे बैठे है सदियों से<br />प्रवेश करता है वसंत<br />उम्मीदों और प्रेम की<br />ढेरों सौगात लिए<br />जिसकी झिलमिल रोशनी में<br />आरंभ करते है वे<br />अधेरे से उजाले तक का<br />एक नया सफ़र फ़िर से<br />एक नया गीत गाते हुए...<br /><br />अपने टूटे पखों और<br />पतवारों को संभाले<br />देखते महसूसते<br />एक बार फ़िर से<br />अपने चारो ओर बरसते<br />नेह और उम्मीद की आशीषमय<br />बरखा के स्नेहिल स्पर्श से<br />पतझड़ को वसंत में बदलते हुए<br />और सपनों को हंसते मुस्कराते हुए...<br /><br />....<br />....<br /><br /><br /><span style="color:#ffff00;"><span style="font-size:130%;"><strong>आप सभी को वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!!!!!!!!</strong></span></span></div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com56tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-66615688742563818072011-02-05T02:00:00.000-08:002011-02-05T02:14:35.690-08:00एक पुरानी कविताहमेशा की तरह पिछले दिनों मैं काफी अस्वस्थ रही. वैसे भी सर्दियों में और मौसम के उतार चढ़ाव के वक्त में दमा और उससे जुड़ी परेशानियां कुछ ज्यादा ही तंग करती हैं. इसीलिए मुझे भी पूरी तरह स्वस्थ होने के लिए काफी दिनों तक आराम करना पड़ा. इस कारणवश मैं काफी दिनों तक अपने इस ब्लाग परिवार से दूर रही.<br /><br />इन दिनों मैं कुछ ज्यादा कर नहीं पाई, इसलिए अपनी एक पुरानी कविता दुबारा पोस्ट कर रही हूं. इतने दिन मैं कितना सब कुछ पढ़ने से वंचित रही, उन सबको अब पढ़ना चाहूंगी. इस सब में कुछ समय अवश्य लगेगा. आशा करती हूं कि आप सभी अपना स्नेह, सहयोग और मार्गदर्शन पूर्ववत बनाएं रखेंगे.<br /><span class=""></span><br /><span class=""></span><br /><div align="center">-एक पुरानी कविता-<br /><br /><strong>आने वाले समयों में....</strong><br /><br />संभावना बची रहे<br />आने वाले समयों में<br />जिंदगियों में हमारे<br />हंसने की/गाने की<br />रोने की/शोकित होने की<br />बचपने की/मूर्खताओं की<br />पागलपन की/गलतियों की<br />........<br /><br />संभावना बची रहे<br />महज कंकड़ पत्थर<br />या तुच्छ कीट कीटाणु<br />निष्प्राण पाषाण/या<br />बर्बर पशु बनते जाने के,<br />मनुष्य बने रहने की<br />........<br /><br />संभावना बची रहे<br />इस आपाधापी/कोलाहलमय<br />जीवनों में<br />आकाश की ओर ताकने की<br />और लहरों को गिनने की<br />हमारी उबड़खाबड़ जिंदगियों में<br />स्नेह, संवेदना एव करूणा की<br />कोमल कलियों के खिलने की<br />........<br /><br />संभावना बची रहे<br />जीवनों के<br />खिलने की/पनपने की<br />सपने देखने की<br />नई सृष्टि रचने/बनने की<br />मनों के/अंधेरे<br />सर्द/सूने गलियारों में<br />सूरज के किरणों के<br />अल्हड़ ताका झांकी की<br />........<br /><br />संभावना बची रहे<br />तमाम दुश्मनी और दूरियों को भूलकर<br />आपस में/एक दूसरे के लिए<br />महज मूक दर्शक/तमाशबीन बने रहने के<br />दर्पण और दीपक बनने की<br />हमसफ़र और रहनुमा बनने की<br />........<br /><br />संभावना बची रहे<br />हमारी सुविधाभोगी, मौका परस्त<br />मतलबी, हिसाबी किताबी जिंदगियों में<br />कभी कभार, यूं ही<br />बेमकसद/बेवजह जीने की<br />दूसरों को अपने किसी स्वार्थ सिद्धि हेतु<br />महज साधन या सीढ़ी सा<br />इस्तेमाल करने की बजाए<br />उन्हें भी खुद सा समझने की<br />........<br /><br />संभावना बची रहे<br />कटु कर्णभेदी शोरगुल के<br />आदी/अभ्यस्त हमारे मनों में<br />कोमल/निशब्द/शब्दहीन बातों के<br />पारदर्शी रूप छटा को<br />समझने/पहचानने की<br />जुबान की दहलीज पर ठिठके/सहमे<br />शब्दमाला से कोई सुंदर सा गीत पिरोने की<br />........<br /><br />संभावना बची रहे<br />अर्धसत्यों/षडयंत्रो<br />छल प्रपंचो के<br />काई पटे कीच में<br />डूबते/उतराते<br />महज सांस भर ले पाने की<br />........<br /><br />भागमभाग के जिन्न के<br />पंजो मे दबोची हुई जिंदगियों के<br />सांस थमने से पहले<br />मिले फ़ुर्सत पल भर को<br />भरपूर सांस ले<br />अपना अपना जीवन<br />जी पाने की<br />........<br /><br />संभावना बची रहे<br />मिटने/खत्म होने हम में<br />छोटे छोटे स्वार्थों के लिए<br />गिरते हुओं को रौंदकर<br />सबसे आगे निकलने की प्रवृत्ति का<br />दूसरे की कीमत पर<br />खुद को बेहतर सिद्ध करने का<br />........<br /><br />संभावना बची रहे<br />आने वाले समयो में<br />अंधेरे अंतहीन ब्लैकहोल (श्याम विवर) में<br />गर्क होती जिंदगियों की विरासतों का<br />नक्षत्र/नीहारिकाएं और<br />अनगिन रोशनी की लकीरें बन<br />अंतरिक्ष में जगमगाने का !!<br />........<br />........ </div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com40tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-74367825051125614152010-12-31T01:36:00.000-08:002010-12-31T01:41:14.027-08:00नव वर्ष २०११ - एक कामना<div align="center">काश किसी रोज ऐसी एक सुबह आए<br />और महज एक दिन के लिए नहीं<br />वरन् हमेशा के लिए सबके जीवन में बस जाए<br />शामिल हो जिंदगी के जुलूस में हाशिए के परे जीने वाले<br />और अविश्वास की धुंध में लिपटे हमारे जीवनों में<br />उम्मीद और विश्वास की उज्जवल रोशनी जगमगाए.<br /><br />काश किसी रोज ऐसी एक सुबह आए<br />जब अन्देखती वीतरागी आखों में भी<br />हर पल नई नई स्वप्न लहरियां झिलमिलाएं<br />थके हारे टूटे पराजित हॄदय भी<br />अपने दर्द से मूक अधरों से<br />उमंग और उल्लास के चमकीले गीत गाएं.<br /><br />काश किसी रोज ऐसी एक सुबह आए<br />जब हमारा जीवन एक नई सृष्टि बन जाए<br />हमारी उदासीन हॄदयहीन दुनियाओं में<br />प्रेम का समंदर अनंत काल तक लहराए<br />हमारी बेसुरी कटु कोलाहलमय जीवनों में/ वो प्रेम<br />किन्हीं सुमधुर संगीत लहरियों की बारिश बन बरसे.<br /><br />काश किसी रोज ऐसी एक सुबह आए<br />जब देर से रूके थमे समय की भी चाल बदल जाए<br />जीवन की परिधियों के परे परिक्रमा करती जिंदगियों को<br />उम्मीद और परिवर्तन की ठंडी बयार हौले से छूकर गुजर जाए<br />जीवन की पटरी से उतरी हुई सभी जिंदगियां भी<br />सही सलामत अपनी अपनी मंजिलों तक पहुंच जाए.<br /><br />काश किसी रोज ऐसी एक सुबह आए<br />जब हर अंत की हो एक नई और सुंदर शुरूआत<br />जिंदगी तो चलती रहती है अनवरत अविराम<br />देती है असंख्य अवसर बदलने के खुद को और अपने जीवन को<br />गतिहीनता के भंवर मे छटपटाते जीवन भी सहेज उन सौगातों को<br />सब कुछ को भूल आगे बढ़ने या पीछे छूटे जीवन को लौटकर सहेजने का बल पाए.<br /><br />काश किसी रोज ऐसी एक सुबह आए<br />जब अन्याय और शोषण से जूझते/बुझते जीवनों का अंधेरा छट जाए<br />उनकी गुंजलक भरी दमघोटूं जकड़ से वे सभी मुक्ति के स्वप्न सजाए<br />अन्याय और शोषण से लड़ते लड़ते थक न जाए मुठठी भर लोग<br />टूट न पाए विरोध की कड़ी, उनके साथ क्यों न शामिल हो जाए हम सभी/ कि घबराकर<br />ढह जाए जल्द ही अन्याय और शोषण के आतंक का निरंतर बढ़ता हुआ साम्राज्य.<br /><br />काश किसी रोज ऐसी एक सुबह आए<br />जब अपने घरों को अपने कंधों पर टांगे घूमते दर-ब-दर<br />सभी बेघर निर्वासित विस्थापित मजबूर बेबस लोग<br />जो थक गए है अजनबी दुनियाओं में भटकते भटकते<br />कि आस न टूटे उन सूने घरों की जो देखता है सपने उनके वापसी का/<br />खत्म हो प्रतीक्षा, उनकी धरती उनके आकाश की जो बाट जोहता है सबकी आज भी.<br /><br />काश किसी रोज ऐसी एक सुबह आए<br />गरीबी भुखमरी अशिक्षा और बेरोजगारी के अभिशापों से<br />अकेले ही जूझती लाचार बेबस जिंदगियां<br />बने न मात्र किसी भी सांख्यिकी का महज एक हिस्सा<br />उन्हे भी मिले सम्मानजनक और गरिमामय जीवन का अधिकार<br />तिल तिलकर जीने मरने के अनवरत क्रम में कुछ तो बचा रहे जीने लायक.<br /><br />काश किसी रोज ऐसी एक सुबह आए<br />पल पल उजड़ती प्रकृति के विनाश का सिलसिला थम जाए<br />बनकर न रह जाए महज वो किस्से कहानियों की दुनिया<br />बचा रहे उन हरे भरे जंगल पर्वत पहाड़ और नदियों का संसार<br />सबके लिए बचा रहे हरियाली का सपना कोयल और मैना के गीतों सा<br />कि कहीं गुम न हो पेड़ पत्तियों पंछी और मछलियों का पारदर्शी झिलमिलाता संसार सपनों तक से.<br /><br />काश किसी रोज ऐसी एक सुबह आए<br />दिन-ब-दिन सिकुड़ती दुनिया और सिकुड़ते दिलों के बीच हम मनुष्य बने रहने का मोल चुकाएं<br />बनाएं हम मेल प्रेम सद्भावना और संवेदना और सहिष्णुता के ढेरों पुल/ दूरियों को पाटने हेतु<br />और टूटती बिखरती इस दुनिया को प्रेम और अपनेपन से सहेज संभाल /रखें बचा कर<br />ये दुनिया आने वाले सभी बच्चों के लिए जिन्हें मिले एक स्वर्ग सी सुंदर दुनिया<br />हमारे बाद भी जिसमें वे मिलजुल कर रहें और बढ़ें मिलकर हंसते गाते सभी स्वर्णिम भविष्य की ओर.<br /><br />***<br />*******<br />***</div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com72tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-13126804702106057412010-12-27T07:19:00.000-08:002010-12-27T07:28:04.230-08:00बीतना एक साल का<div align="center">काल की दहलीज पर ठिठका हुआ ये साल<br />बुझते मन से देख रहा है उस भीड़ को जो<br />घक्का मुक्की करते गुजर रही है सामने से<br />उसे अजनबी आंखों से घूरते<br />बड़ी ही हड़बड़ी और जल्दबाजी में.<br /><br />उसे याद आते हैं वो पल<br />जब वो उन लोगों के जीवन में<br />सांस और धड़कन<br />संगीत और स्वप्न बन<br />रच बस गया था<br />उनके सुख दुख का<br />हिस्सा बन गया था.<br /><br />नियति ने तो भेजा था<br />अपना एक दूत बना कर<br />खट्टे मीठे सौगातों की पोटली थमाकर<br />पर पल भर के लिए<br />मानों सब कुछ भूल गया था<br />उसका मन भी शायद<br />जीने को मचल गया था.<br /><br />बिछुड़ने का दर्द समेटे<br />ढूंढता है इस वक्त<br />कोई ऐसा दिल<br />जो सहेजेगा<br />उस की यादों को<br />और करेगा ढेरों बातें<br />उसके बारे में<br />धुधलाने या गुमने<br />न देगा उसे<br />या उसकी यादों को.<br /><br />उसे नहीं मालूम कि<br />उसी भीड़ से निकलेंगे<br />ढेर सारे कई ऐसे लोग<br />जो बाद में, काफ़ी बाद तक<br />उसे याद करेंगे<br />और करेंगे उसकी बातें<br />अपनों से या अकेले में<br />जैसा कि लोग अक्सर करते हैं<br />सब कुछ बीत जाने के बाद.<br /><br />क्योंकि अतीत भी उतना ही प्रिय है उन्हें<br />जिसे जीते है रोज ही सपनों में किस्सो में<br />जितना लगाव है भविष्य से<br />जहां जन्मती है नई उम्मीदें और नए नए सपने<br />और समय के पुल पर से गुजर कर<br />वे भी तो सभी दुनियाओं में रखते हैं<br />कदम साथ साथ<br />सब कुछ को समेट<br />परिक्रमा करते हैं<br />अपनी अपनी दुनियाओं में.<br /><br />उसका बुझा हुआ मन<br />थोड़ी देर बाद<br />लोगों से मिले हुए<br />प्रेम से उमड़ते हुए<br />अपने प्याले को थाम<br />शामिल होगा उस जश्न में<br />और खुशी खुशी लेगा विदा<br />और फ़िर से दाखिल होगा<br />उन की जिंदगियों में<br />एक नया साल बन कर!!<br /><br />........<br />........</div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com40tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-57745213141496059902010-12-24T12:41:00.000-08:002010-12-24T12:50:23.064-08:00क्रिसमस... कुछ अनुदित कविताएं<div align="center"><strong>क्रिसमस के अवसर पर कुछ अनुदित कविताएं...<br /></strong><br /><strong>१.<br />लौटता है बैतलहम में मेरा दिल<br />-अज्ञात-</strong><br /><br />लौटता है बैतलहम में मेरा दिल<br />हर साल क्रिसमस के मौके पर<br />जब इंतजार करती है दुनिया<br />चरनी में जन्मे राजा का<br />जहां झुके हुए हैं स्वर्गदूत<br />मैं करती हूं यात्रा<br />उन ज्योतिषियों के साथ<br />करने राजा की आराधना<br />और सोचती हूं आश्चर्य से<br />मैं क्या उपहार ले जाऊं<br />हम सब जो इतने निकम्मे हैं<br />बा्लक ख्रीष्ट को<br />आखिर कौन सा उपहार भेंट करूं<br />शायद उसके बि्छौने के लिए कोई कंबल<br />या शायद कोई चटकीला सितारा<br />या सुनाऊं उसे कोई कविता<br />और अगर वो रो पड़े/ तो<br />शायद मैं थाम लू उसका हाथ<br />या गाऊं कोई लोरी<br />हर बरस लौटता है दिल मेरा<br />बैतलहम में क्रिसमस के दिन<br />कि चरनी के पास जाकर दंडवत करूं<br />और बहाऊं खुशी के आसूं<br /><br />*****<br /><br /><strong>२.<br />क्रिसमस का तारा<br />-मेरी गैरेन-</strong><br /><br />बहुत दिनों पहले उस रात्रि में / जब<br />क्रिसमस के तारे से जो चमकी थी रोशनी<br /><br />इस क्रिसमस की रात्रि में तुम पर चमके<br />और तुम्हारे चेहरे को प्रकाशित करे<br />काश कि वो तुम्हारी आंखों से दमके<br />और बस जाए तुम्हारे मन में<br />और तुम्हारी आत्मा में उसकी आंच झिलमिलाए<br />एक थके हुए संसार को जो शांति दी थी उसने<br />आज तुम्हारे दिल को वो खुशियों से भर दे.<br /><br />*****<br /><br /><strong>३.<br />प्रथम रोशनी<br />-स्टीफ़ेन लीक-</strong><br /><br />घर से दूर सितारा, अनिच्छा से<br />आकाश की खिड़की से बाहर धकेले जाने के बाद भी<br />वो ठहरा हुआ है सुबह की चौखट पर<br />कहानियों की रोशनी का इतिहास पलटते हुए. दुबारा से.<br /><br />धीमे से, गिराता है अपने उपहार<br />साधारण वैभव, खुशियों से छलकता हुआ<br />उसकी उष्मा, हाथ मे थामें हुए एक शीशे की रूह की .<br /><br />और जैसे प्रार्थनाओं द्वारा दिन बन जाता है खास<br />वो गिरेगा.<br />गिरेगा अपने ही ख्वाब में लौटकर<br />वहां वो गाएगा<br />अपनी उपस्थिति से<br />लिपटे हुए दिन को खोलते हुए.<br /><br />*****<br /><br /><strong>४.१<br />क्रिसमस के गीत<br />-क्रिस्टीना रोसेटी-</strong><br /><br />क्रिसमस में है अंधकार<br />दुपहरी की चकाचौंध से भी अधिक द्युतिमान<br />क्रिसमस में है ठंडक<br />जून की गर्मी से भी उष्म<br />क्रिसमस में है सौंदर्य<br />दुनिया में मौजूद खूबसूरती से भी बढ़कर<br />क्योंकि क्रिसमस लाता है यीशु को<br />जो उतर आया धरती पर हमारे लिए<br /><br />धरती बजाओ अपना संगीत<br />पंछी जो गाते है और घंटिया जो बजती हैं<br />स्वर्ग के पास है मेल खाता हुआ संगीत<br />जिसे जल्द ही सब देवदूत मिलकर गाएंगे<br />धरती तुम पहन लो बेदाग बर्फ़ की<br />अपनी सबसे श्वेत<br />दुल्हिन की पोशाक<br />क्योंकि क्रिसमस लाता है यीशु को<br />जो उतर आया धरती पर हमारे लिए<br /><br />*****<br /><br /><strong>४.२<br />क्रिसमस के गीत<br />-क्रिस्टीना रोसेटी-</strong><br /><br />प्रेम उतर आया क्रिसमस पर<br />बेहद प्यारा, दिव्य अलौकिक प्रेम<br />प्रेम जन्मा था क्रिसमस पर<br />तारे और देवदूतों ने दिए थे चिन्ह<br /><br />पूजते हैं हम देवत्व को परमेश्वर को<br />देहधारी प्रेम को, दिव्य प्रेम<br />हम अपने यीशु को पूजते हैं<br />पर किससे मिलेंगे अब वो चिन्ह ?<br /><br />प्रेम ही होगा हमारा चिन्ह<br />प्रेम बने तुम्हारा और प्रेम बने मेरा<br />प्रेम हो परमेश्वर से और सभी मनुष्यों से<br />प्रेम हो प्रार्थना और सौगात और चिन्ह के लिए<br /><br />*****<br /><br /><strong>५.<br />क्रिसमस की सुबह का संगीत<br />-अन्ना ब्रोन्टे-</strong><br /><br />मुझे पसंद है संगीत... पर उसकी तान कभी नहीं<br />जो जगाए मन में ऐसे दिव्य हर्षातिरेक<br />जो शोक को करे कम<br />और पीड़ा को हर ले<br />और मेरे इस विषादपूर्ण दिल को झकझोर दे--<br />जिसे हम सुनते है क्रिसमस की सुबह में<br />शिशिर की सर्द हवाओं पर सवार होके<br />यद्यपि अंधकार का साम्राज्य कायम है अभी<br />और कई घंटे बाकी है सुबह होने में<br />दुस्वप्नों से या गहरी नीदों से<br />वो संगीत हौले से जगाती है हमें<br />वो किसी देवदूत के स्वर में पुकारती है हमें<br />जागने, आराधना करने और आनंद मनाने के लिए<br /><br />उस मनोरम सुबह का स्वागत उल्लास से करने के लिए<br />जिसका देवदूतों ने अरसा पहले किया था स्वागत<br />जब हमारे उद्धारकर्ता ने जन्म लिया था<br />स्वर्ग की रोशनी को धरती पर लाने के लिए<br />कि अंधकार की ताकतें छंट जाए<br />और धरती को मौत और नरक से छुटकारा दिलाने<br /><br />उस पावन राग को सुनते वक्त<br />हर्षातिरेक में डूबी मेरी रूह<br />उड़ान भरती है काफ़ी ऊंचाईयों तक<br />ऐसा प्रतीत होता है कि मैं सुन रही हूं उन गानों को<br />जो खुले आकाश के तले गूंज रही हैं<br />जिन्होने जगाई थी वो स्वर्गीय आनंद<br />उनमें जो रात में अपने झुंड की देख भाल कर रहे थे<br /><br />उनके साथ मैं मनाती हूं उसका (प्रभु का) जन्म<br />परमेश्वर को ऊंचे में हो धन्यवाद<br />धरती में शांति और मेल होवे<br />हमें दिया गया है उद्धारकर्ता राजा<br />परमेश्वर अपने लोगों को अपनाने आया है<br />और शैतान की शक्ति को पराजित कर दिया है.<br /><br />एक निर्दोष परमेश्वर पापी मनुष्यों के लिए<br />उतरता है धरती पर कष्ट सहने और लहुलुहान होने के लिए<br />नरक को अपना साम्राज्य अब छोड़ देना चाहिए<br />और शैतान को अब मान लेना चाहिए<br />कि ख्रीष्ट ने आशीष देने का अधिकार कमा लिया है.<br /><br />अब पवित्र शांति मुस्करा ले स्वर्ग पर से<br />और धरती से फ़ूट निकलेंगी स्वर्गीय सच्चाई<br />कैदी के बंधन टूट गए है अब<br />क्योंकि हमारा उद्धारकर्ता हमारा राजा है<br />और जिसने मनुष्यों के लिए अपना लहू बहाया<br />वो हमें घर वापस ले जाएगा परमेश्वर के पास<br /><br />*****<br /><br /><strong>६.<br />मोमबत्ती से रोशन दिल<br />-मेरी ई लिंटन-</strong><br /><br />संसार के किसी कोने से इस सर्द रात्रि में<br />फ़िजाओं में गूंजती घंटियों का शोर सुनाई देगा तुम्हें<br />क्रिसमस ने फ़ैला दी है चारों ओर सब कुछ को समेट लेने वाली रोशनी<br />जिसे दूरियों के बावजूद हम बांट सकते है आपस में<br /><br />तुम भी गा रहे होगे जैसे मैं गा रही हूं इस वक्त<br />उन चिरपरिचित गानों को जिन्हें हम अच्छे से जानते हैं<br />और अपने वहां के आसमान में तुम्हें दिखाई देंगे यही सारे सितारे<br />और उस चमकीले टूटते हुए सितारे से मांगोगे कोई दुआ<br /><br />याद करूंगी तुम्हें और सजाऊंगी मैं क्रिसमस ट्री<br />जिसकी ऊपर वाली डाली में टंगा होगा एक चमकदार सितारा<br />मैं वहां टांगूगी विश्वास की पुष्पमालाएं जिसे देख लें सब लोग<br /><br />आज की रात मैं झांक रही हूं अपने समय (अभी और अब)के परे<br />और जब तक रहना पड़े हमें अलग अलग<br />मैं दिल में मोम बत्ती की लौ जलाए रखती हूं<br /><br />*****<br /><br /><strong>७.<br />-अज्ञात-<br /></strong><br /><br />रोशनी की सौगात है मोमबत्तियां<br />इक नन्हा सूरज, एक तारे का कतरा<br />रात्रि का कोई भी नर्तक<br />नहीं नाच सकता आनंद से इस कदर लबालब भरके<br />शांत झिलमिलाती नन्हीं आत्माएं<br />हरेक में है एक झलक उस की जो हम सभी हैं<br />जगमगाते हुए निष्पाप मासूम और पवित्र.<br /><br />***<br />*****<br />*** </div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com29tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-64161940108540410992010-11-26T22:43:00.000-08:002010-11-26T22:46:12.660-08:00बातों की दुनिया<div align="center">कुछ बातों को<br />उम्र लग जाती है<br />सामने आने में<br />सही वक्त और सही स्थान का<br />इंतजार और चुनाव करते करते<br />थक हारकर पस्त हो चुकी बातें<br />समय आने तक<br />लुंज पुंज दशा में<br />खुद अपना ही<br />मजाक बनकर रह जाती हैं<br />वो सारी बातें<br />........<br /><br />परत दर परत<br />अर्थों की खोलती वो बातें<br />गुम हो जाती हैं<br />हवाओं में<br />अस्फुट अस्पष्ट सा<br />शोर बनकर<br />जब मिलता नहीं<br />कोई भी इन्हें<br />सुनने समझने वाला<br />........<br /><br />कुछ बातें<br />हमेशा जल्दबाजी<br />और काफी हड़बड़ी में<br />होती हैं<br />बाहर निकलने के लिए<br />अपनी बारी तक का<br />इंतजार नहीं करती<br />बात बे-बेबात पर<br />खिसियाकर झल्लाकर<br />तो कभी इतराकर<br />या इठलाकर<br />निकल ही पड़्ती हैं<br />दुश्मन को धूल चटाने<br />सब के सामने उसे<br />नीचा दिखाने<br />........<br /><br />शत्रुतापूर्ण ईर्ष्या से भरी<br />कलह क्लेश की चिंगारियां उड़ाती<br />अपने शिकार को विष बुझे बाण चुभोकर<br />करती है<br />उस अभागे का<br />गर्व मर्दन<br />........<br /><br />कुछ बातें<br />कोमल दूब सी<br />उजली धूप सी<br />भोले विश्वास सी<br />और पुरखों की सीख सी<br />जो बहती है ठंडी बयार सी<br />या बरसती है भीनी फुहार सी<br />........<br /><br />कुछ बातें होती हैं<br />इतनी ढकी छिपी<br />कि उनकी आहट तक से<br />रहते है बेखबर उम्र भर<br />और जान पाते है उनका मायाजाल<br />उनके बाहर आने पर ही<br />जब वे तोड़ कर रख देती हैं<br />एक ही पल में<br />कितने ही रिश्ते या दिल<br />या जोड़ देती हैं<br />एक ही झटके में<br />टूटे हुए रिश्ते या घर<br />........<br />........</div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com46tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-10841407669392571272010-11-24T23:56:00.000-08:002010-11-25T00:00:29.590-08:00जिंदगीनामा<div align="center">१.<br /><br /><strong>धड़कन</strong><br /><br />बूढ़े बरगद की<br />निश्चल उच्छवास में<br />कैद है<br />पीड़ा और संताप से कराहती<br />धरती के<br />धड़कते दिल की<br />नन्हीं सी धड़कन<br />........<br />........<br /><br />२.<br /><br /><strong>आमंत्रण</strong><br /><br />हर<br />परिवर्तन<br />एक अवसर<br />एक आमंत्रण<br />जिंदगी के<br />उत्सव और नृत्य में<br />शामिल होने को<br />जिंदगी स्थिर नहीं<br />दायरों में<br />घूम रही है<br />अपने ही<br />नृत्य में<br />मस्त और डूबी<br />........<br />........ </div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com35tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-48210214215304671382010-11-23T23:07:00.000-08:002010-11-23T23:17:08.934-08:00शहर में चांद<div align="center">गगनचुबियों में फ़ंसा चांद<br />भौंचक्का, कुछ घबराया सा<br />ताकता है इधर उधर<br />खिन्न हो फ़िर चल देता है यूं ही<br />किसी भी ओर<br />अकबकाया अनमना सा<br />........<br /><br />जैसे पहली बार आया हो<br />किसी छोटे से गांव से चलकर<br />इतने बड़े शहर में / और<br />जतन से सहेजा पता सामान सहित<br />किसी ठग ने चुरा लिया हो<br />शहर पहुंचते साथ ही<br />........<br /><br />रात रात भर उंघती<br />गगनचुबियों की कैद में छटपटाता<br />अनमना सा चांद<br />चुपके से आंख बचा<br />झांक रहा चुपचाप<br />किसी नए बनते इमारत के<br />ऊपर तक उठती<br />स्टील गर्डरों के छेद में से<br />........<br /><br />नीचे बिछी लंबी काली<br />सड़कों पर<br />दूर तक रोशनियों का झुरमुट<br />तब ऐसे में<br />कौन पूछे उसे भला?<br />........<br /><br />टिक कर किसी दीवार से<br />थका हुआ चांद<br />सुस्ताता/ उंघता है<br />यहां कैसे रूक पाए अब<br />सोच रहा देर तलक<br />चांद पगलाया सा<br />किसी को फ़ुर्सत या<br />जरूरत ही नहीं है अब शायद<br />........<br /><br />इससे तो अच्छा<br />गांव का गंदला पोखर ही सही<br />देखने को मिल तो जाती थी<br />अपनी सूरत<br />बदरंग / बेकार ही सही<br />पर होती तो अपनी ही<br />........<br />........</div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com25tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-38775783744573286862010-11-21T10:52:00.000-08:002010-11-21T11:00:49.342-08:00सैलानी ही हैं वे<div align="center">बरसों से जीर्ण शीर्ण<br />सूने अंधेरे गलियारों में<br />घूम टहल रहे हैं वे<br />जहां तहां बिखेरते<br />बेवजह बातों के छिलके<br />अपनी किसी दुनिया में गुम<br />पल भर को चकित/ मुग्ध<br />निहारते उन खंडहरों को<br />जैसे जग पड़े हों सोते से<br />फ़िर उबासी का चुइंगम चबाते<br />निकल पड़ेंगे बाहर किले से<br />लौट जाने अपनी अपनी दुनियाओ में<br />........<br /><br />आखिर को तो/ महज<br />सैलानी ही हैं वे<br />कभी भूले भटके<br />करेंगे याद<br />दीवारों पर खुदे<br />उन भूले बिसरे चित्रों को<br />पच्चीकारी/ कारीगरी को<br />और फ़िर भूल जाएंगे<br />किसी रोचक किस्से सा<br />........<br /><br />स्मृ्तियों के चमगादड़<br />आशंकित/ आतंकित से<br />निहारेंगे भर<br />उन टेढ़ी-मेढ़ी<br />रोशनी की लकीरों को<br />जिनके परे दफ़्न हैं उनकी जिंदगियां<br />........<br />........</div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com24tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-14500926378276178872010-11-12T06:06:00.000-08:002010-11-12T06:08:33.524-08:00काफ़िला सूरज का<div align="center">मची है खलबली चांदनी की महफ़िल में,<br />सुना है आ पहुंचा नजदीक काफ़िला सूरज का.<br />........<br /><br />मिटने से लगे है सदियों पुराने दायरे अब अंधेरों के,<br />जबसे होकर गुजरा है बस्तियों से काफ़िला सूरज का.<br />........<br /><br />अंधेरों में जो घिरे बैठे थे खोए खोए,<br />ढूंढने आया है खुद चलकर उन्हें काफ़िला सूरज का.<br />........<br /><br />लेके आया है वो एक समंदर रोशनी का,<br />जो भी डूबेगा उसी का हो गया काफ़िला सूरज का.<br />........<br /><br />कैद कर लाया है वो रफ़्तार एक बवंडर का,<br />अब न रूकेगा चल पड़ा है जब काफ़िला सूरज का.<br />........<br /><br />तिनकों से उखड़ जाएंगे जड़ समेत ये बरगद सारे,<br />रूख हवाओं का जब बदल देगा काफ़िला सूरज का.<br />........<br />........</div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com26tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-56989189939471902522010-11-09T09:58:00.000-08:002010-11-09T10:04:23.091-08:00आंसुओं का सफ़र<div align="center">आंसुओं का<br />जब<br />सितारों सा<br />जगमगाने का<br />समय आता है<br />तो काल भी<br />कुछ पल के लिए<br />ठहर और<br />थम जाता है....<br />गुमनाम कोनों से<br />निकलकर<br />जब आती है<br />आंसुओं की फ़ौज<br />तो<br />आसमान का<br />सूना आंचल भी<br />कुछ पल के लिए<br />रोशनियों की<br />जगमगाहट से<br />दमक उठता है<br />........<br />........</div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com21tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-52275453291551644302010-11-07T02:26:00.000-08:002010-11-07T02:29:14.612-08:00आकाशगंगाओं का सफ़रनामा<div align="center"><strong>रोशनी की नदी</strong></div><div align="left"><span class=""></span><span class=""></span> </div><div align="left"><br /><br />शून्य के केन्द्र तक का सफ़र किस कदर आंसुओं असफ़लता और अकेलेपन से भरा है, इसे वही ठीक से बता सकता है जो कि उन कठिन दुर्गम मार्गों से गुजरा है, और उनका साक्षी भी रहा है. पर उनके जीवनों के अनुभव हमारे जीवनों को कुछ अधिक समृद्ध और सुन्दर बना देते हैं. वे हमें जीवन के उन आयामों और पक्षों से हमारा साक्षात्कार कराते है जिनकी कल्पना अबसे कुछ पल पहले तक असंभव प्रतीत हो रही थी. उन्हें, उन लोगों ने अपने अदम्य साहस और अपूर्व हौसले और आत्मविश्वास के बूते संभव और साकार कर दिखाया और कृष्ण पक्ष के अंधेरी रातों का उज्जवल आयाम लोगों के समक्ष रखने का जोखिम उठाया जिसे लोग अक्सर अन्देखा करते है और जो अंधकार को सिर्फ़ बुराई का गढ़ या पर्याय मानते रहे हैं. पर अंधकारमय जीवनों में भी छुपे हैं कल्पनातीत संभावनाओं से सृजित सुन्दर सपनों के इन्द्रधनुषी पुलों व सेतुओं के अनगिन जाल जो घने कोहरों के धुंधलके में डूबी जिंदगियों में विद्युत बन उजास फ़ैलाते हैं और न जाने कितनी ही जिंदगियों को रोशन कर जाते हैं.<br /><br />साधारण लोगों की असाधारण कहानियों के सिरे गुमनामी के गर्त में समा जाते हैं, हम सबकी उपेक्षा, उदासीनता और उत्साह हीनता के बदौलत जिन पर एक से एक बहानों की लीपापोती करके अपने उत्तरदायित्व से पिंड छुड़ा लेते हैं, और इस तरह अन्जाने में ही हम रोज ही अपने मानव बने रहने के उत्तराधिकार को ठुकराते और गंवाते है. ऐसे कर्मठ और जुझारू लोगों को अभावों, उपेक्षा, उपहास, उपालंभ और तिरस्कार की अग्नि जलाकर राख में तब्दील नहीं करती बल्कि उन्हें रोशनी के एक अजस्त्र प्रवाहमान नदी बना देती है, जिसकी रोशनी में आज भी साधारण लोग अपना जीवन बिना किसी कड़वाहट के हंसी खुशी बिता देते है.<br /></div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-452640168636271432010-11-05T12:23:00.000-07:002010-11-05T12:28:27.212-07:00‘सिसिफस’ के वंशज....‘जीरो वॅाट’ की फीकी बुझी रोशनी वाली जिंदगी का बोझ कमजोर कंधों पर डाले अपने क्लांत हाथों से हांफते कराहते चोटी तक पत्थर पहुंचाने के प्रयत्न में जुटे हुए हैं सदियों से अभिशप्त ‘सिसिफस’ के वंशज... यह जानते हुए भी कि चोटी पर पहुंचते ही पत्थर नीचे की ओर लुढ़क पड़ेगा पर उन्हें पत्थर को चोटी पर पहुंचाना ही है चाहे जो भी हो. इतना धैर्य इतनी कर्मठता शायद उन्हें इसीलिए ही मिली है ताकि वे समूचे संसार का बोझ बिना किसी शिकवे या शिकायत के अपने ऊपर उठा लें और बिना किसी प्रतिफल की इच्छा किए अपने छोटे से संसार में मगन रहें इस अनास्था की महारात्रि में.... प्रज्जवलित दीपों की तरह..... किन्हीं दीप स्तंभों की तरह.....Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-64386401027085417142010-11-04T07:11:00.000-07:002010-11-04T07:27:21.805-07:00आज मेरे पिताजी का जन्म दिन है.... दीपावली की शुभकामनाएं<div align="left">मेरे पिताजी ने जिंदगी के उतार चढ़ाव भरे हर सफ़र को सहज भाव से जिया. अपने परिवेश के प्रति संवेदनशीलता और सजगता ने उन्हें पारिवारिक जीवन के साथ साथ सामाजिक सरोकारो से भी जोड़े रखा. आज भी पक्षाघात के शिकार होने के बावजूद भी उन की संघर्षरत मानसिकता की लौ मद्धम नहीं पड़ी है. सब कुछ के बावजूद उनका सहज सरल और रागात्मकता भरा जीवन मेरा प्रेरणास्रोत रहा है.<br /><br />मैं परमेश्वर पिता से उनके जीवन में एक और साल बढ़ाने के लिए धन्यवाद के साथ, उनकी लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए, अपनी दो कविताएं उन्हें समर्पित करती हूं. <br /><br /><br /></div><div align="left"><strong><span class=""></span></strong> </div><div align="center"><strong>गिद्धों और सियारों की टोली से....</strong><br /><br />खबरदार<br />अभी नहीं हुआ है सब कुछ खत्म<br />अभी तो है जिंदगी से जंग बाकी<br />अभी तक नहीं टूटी है सांसे<br />अभी तो है थोड़ी सी आस बाकी<br />........<br /><br />अभी इन बूढ़ी आंखों में आग है बाकी<br />अभी बूढ़ी हड्डियों में दमखम है कायम<br />इन बुझती आवाजों में ललकार है बाकी<br />भले ही हो टूटी फूटी हमारी तलवारें<br />पर फ़िर से युद्ध लड़ने को<br />उनमें झंकार और टंकार है बाकी<br />........<br /><br />हमारे बच्चे किसी के गुलाम नहीं<br />राजसिंहासन के उनके दावे अभी है बाकी<br />अभी वे थक कर सोए है जरा देर को<br />बिसात पर उनकी चाल अभी है बाकी<br />........<br />........<br /><br /><strong>रोशनी का जंगल</strong><br /><br />बिखरे हैं<br />बेतरह उलझे / अंधेरों के झाड़ झंखाड़<br />उखाड़ उन्हें रोप दूंगी अब मैं<br />हर तरफ़ / रोशनी की बेलें<br />और तब / फूटेगी यहां वहां<br />कली.... कली.... रोशनी की डली<br />उग आएगा चारों ओर / एक<br />रोशनी का जंगल !<br />........<br />........<br /><br /><strong>दीपावली की शुभकामनाएं</strong><br /><br />इस ज्योति पर्व का उजास<br />जगमगाता रहे आप में जीवन भर<br />दीपमालिका की अनगिन पांती<br />आलोकित करे पथ आपका पल पल<br />मंगलमय कल्याणकारी हो आगामी वर्ष<br />सुख समृद्धि शांति उल्लास की<br />आशीष वृष्टि करे आप पर, आपके प्रियजनों पर<br />........<br />........</div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com21tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-41994491362982144002010-10-31T07:23:00.000-07:002010-10-31T07:32:00.530-07:00रोशनी की परंपरा<div align="center">रोशनी को आखिर<br />क्या मिलता है यूं<br />जीवन भर जलकर....<br /><br />अंधेरों के साजिशों<br />और षड्यंत्रों के साए तले<br />थर थर कांपता रहता है<br />हर पल<br />रोशनी का नन्हा सा वजूद....<br /><br />रोशनी चाहे तो<br />पा सकती है<br />अपनी तमाम मुश्किलों से निजात<br />सिर्फ देना भर है उसे<br />साथ अंधेरों का<br />हर बार, लगातार....<br /><br />पर यह सब तो है<br />रोशनी की फितरत के खिलाफ़<br />वो क्यों चले चालें<br />और किस के लिए<br />बिछाए जाल....<br /><br />जबकि वो खुद है<br />एक साफ और चमकदार<br />शीशे की मीनार....<br /><br />विश्वासघात और षड्यंत्रों की<br />चौतरफा मार झेलती<br />रोशनी का टूटा हुआ दिल<br />ठाने बैठा है जिद<br />जूझने का<br />अंधेरों से मरते दम तक....<br /><br />भले ही<br />लड़ना पड़े<br />अकेले और तन्हा....<br /><br />क्योंकि, आखिर<br />अंधेरों की हुकुमत भी<br />भला कब तक<br />और क्यों कर चलेगी<br />उस की सल्तनत भी तो<br />आखिर कभी तो ढहेगी और खत्म होगी....<br /><br />एक समय तो<br />ऐसा भी आएगा<br />जब हर दरार और कोना<br />भी जगमगाएगा<br />उस वक्त<br />अंधेरा खुद अपनी ही मौत<br />मर जाएगा....<br /><br />उखड़ जाएंगे पैर<br />उसके सब सिपहसालारों के<br />और जिन्होंने भी<br />दिया था साथ अंधेरे का<br />वे सभी<br />रोशनी के बवंडर के सम्मुख<br />तिनकों से बिखर जाएंगे....<br /><br />अंधेरों के सामने अभी<br />रोशनी<br />लाख कमजोर और लाचार ही सही<br />पर हौसला और उम्मीद<br />किसी एक की बपौती तो नहीं....<br /><br />जिसकी डोर थामे<br />देखते हैं दबे कुचले लोग<br />सपने<br />आने वाले सुनहरे दिनों के....<br /><br />यही तो देता है<br />हिम्मत और ताकत<br />रोशनी को भी<br />अपनी जिद पर अड़े रहने<br />और अपने दम पर<br />अकेले आगे बढ़ने का....<br /><br />फिर से रोशन होंगी<br />बेमकसद अंधेरी जिंदगियां<br />जल उठेंगे मशाल<br />नए नए सपनों के<br />हर गली गली<br />हर शहर शहर में....<br /><br />रोशनी का सपना<br />यूंही बेकार तो नहीं जाएगा<br />रोशनी भले ही मिट जाए<br />पर उसका सपना<br />एक दिन जरूर रंग लाएगा<br />........<br />........</div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com35tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-37454818497820285732010-10-29T07:31:00.000-07:002010-10-29T07:34:21.119-07:00दबे पांव दाखिल होगा उजाला<div align="center">उजाला दाखिल होगा दबे पांव<br />बंद अंधेरे कमरों में<br />और छोड़ जाएगा जाएगा निशान<br />किसी शरारती बच्चे सा<br />....<br /><br />उजाला ढूंढ लेगा<br />कोई रास्ता<br />या चोर दरवाजा<br />फ़िर किसी खुशनुमा झौंके सा<br />रोप जाएगा खुशियों के जंगल<br />....<br /><br />उजाले को जीना है<br />इस दुनिया में<br />अपनी ही शर्तों पर<br />उजाला लेगा किसी दिन<br />इस अंधेरी दुनिया से<br />अपने दमन का हिसाब !!<br />........<br />........ </div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-7448399979714125142010-10-28T06:53:00.000-07:002010-10-28T06:58:03.912-07:00औेर देर होने से पहले<div align="center">बचे रहेंगे कुछ ठूंठ, कुछ झाड़ियां<br />और मुठठी भर पेड़<br />जिन पर होंगे<br />कुछ खाली घोंसलों के ढेर<br />जिन्हें छोड़ कर<br />कब के उड़ चुके होंगे<br />पंछियों के दल<br />जंगलों के उजड़ने से पहले<br />........<br /><br />पेड़ पंछियों और पुरनियों के किस्सों की<br />मद्धिम तान गूंजेगी कुछ दिन<br />जंगल के बाशिंदों के बीच<br />जो छूटे रह गए<br />या बिछुड़ गए भगदड़ के शोर में<br />और जो ढूंढ रहे हैं<br />बरसों से अपना घर<br />टूटती हुई सांसो और<br />खोए हुए सपनों के मलबों के बीच<br />........<br /><br />पर<br />यकीन है इतना कि<br />कभी तो दिन बदलेंगे<br />और जंगल में फ़िर से<br />उग आएंगे<br />सदाबहार पेड़ों के झुंड के झुंड<br />और देर होने से पहले<br />और सब कुछ खत्म होने से पहले<br />लौटेंगे पंछियों के दल के दल<br />अपने अपने बसेरों में<br />........<br />........ </div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-30321783906855990362010-10-27T00:50:00.000-07:002010-10-27T00:54:43.137-07:00सवालों का सफ़रनामा<div align="center">सवालों की दुनिया<br />बड़ी बेतरतीब, बहुत उबड़खाबड़<br />कभी अर्थपूर्ण तो कभी उटपटांग<br />बेतुकी बातों एक सिलसिला भर<br />सारे रास्ते टेढ़े मेढ़े, कहीं फ़िसलनभरी काई<br />जोखिम भरे दुनिया की / एक दुर्गम यात्रा<br />डालती है खलल मन में<br />करती है बेचैन रूह को<br />बन जाता है / फ़ंसकर इसमें<br />हर कोई एक चक्कर घिन्नी<br />सवालों में छुपे होते हैं<br />रोमांच भरे नए खोजों का एक अंतहीन सिलसिला<br />हर गलत जवाब देती है कुंजी / किसी अगले सफ़र का<br />कभी उतावले कभी बेहद गंभीर<br />कभी गुदगुदाते कभी फ़ांस बन चुभते<br />सवाल किसी का भोला विश्वास / तो किसी की कुटिल चाल<br />सवालों के उतार चढ़ाव में छिपे<br />जीवन यात्राओं के विकास की पहेलियां<br />सवालों के धुंधलके भरे कगार से झांकते<br />भूले बिसराए इतिहास के पन्नों में दफ़्न<br />सत्य, अर्धसत्यों और मिथकों के साए<br />सवालों के मर्मभेदी प्रहार<br />कर देते हैं तहसनहस<br />सुरक्षा कवचों का हर चक्रव्यूह<br />सवालों की बंजर उसर धरती<br />सोख लेती है हर आंसू और आहें<br />सवालों की रोशनी में बुनती है जिंदगी<br />नित नए नए ख्वाब<br />........<br />........</div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-4531459871728007916.post-2875823438064144002010-10-25T06:35:00.000-07:002010-10-25T06:40:14.935-07:00आईने का सच<div align="center">किसे पता है आईने का सच<br />भला कौन जान पाया है<br />उस के अंतस की बात<br />आईने का क्या कसूर<br />गर छवि दिखे<br />उसमें अपनी<br />भौंडी और बेतरतीब<br />पर हर बार सजा पाए<br />बस वही एक बेबस और बेकसूर<br />बिंबो और प्रतिबिंबो की<br />चौतरफ़ा मार झेलता<br />सच झूठ मिथ्या छ्ल<br />सभी बातों का<br />निरीह मूक एक साक्षी<br />संसार के अन्यायपूर्ण बातों और मांगो से<br />त्रस्त घबराया बौखलाया<br />ढूंढता है कोई सूना अंधेरा कोना<br />जहां तक न पहुंचती हो<br />रोशनी की कोई नन्ही सी भी किरण<br />........<br />........</div>Dorothyhttp://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.com21