अग्निपाखी के नाम

कुछ नहीं चाहिए मुझे
सिवाय
अपने पैरों तले जरा सी जमीन
और मुठिठयों में जरा सा आसमां
बस / बहुत है इतना ही
मेरे लिए
कि जब चाहूं भर सकूं उड़ान
और फिर ठहरकर
कहीं पर पल भर
उतार लूं सारी थकान
मेरी अभिशप्त तीर्थयात्राओं का
यात्रा दर यात्रा का
रहेगा यही पर सबूत
जिस की तमन्ना लिए
जाने कितनी बार जन्म लेता है मन
फ़िनिक्स सा अपनी ही राख की ढेर से
कर लेता है अभिमंत्रित हर उड़ान
वही देगा बयान हर उड़ान का
प्रामिस्ड लैंड का सफ़र फिर
उदास और तन्हा ही सही !
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अपने सपनों के मलबे और टूटे नुचे पंखो के ढेर के नीचे फड़फड़ाती कराहती और दम तोड़ती जिंदगियों की आंखों में, अग्निपाखी उम्मीदों और आशाओं के अग्निपंख की डोर से बंधे सपनों की नई उड़ानों का एक अविरल अक्षय इन्द्र्धनुषी स्वप्नपुंज बो देता है, जिस की झिलमिलाती रोशनी उन सभी धुंधलाई निष्प्रभ आंखों को फिर से नई नई यात्राओं और उड़ानों की स्वप्न लहरियों में आकंठ डूबने का आमंत्रण देती है.

अग्निपाखी जिंदगी में मिलने वाले उन असंख्य अवसरों संकेतों और सूत्रों का प्रतीक भी है जो यह दर्शाता है कि जिंदगी कभी थमती नहीं, कहीं रूकती नही और हारती भी नही. जिंदगी को भी तो हम सभी के साथ मिल कर उत्सव मनाने का, सपने देखने का और नई उड़ान भरने का अवसर मिलता है. प्रकृति और जिदगी के द्वारा छोड़े असंख्य संकेत सूत्रों को तलाशना और सहेजना अग्निपाखी की परंपरा और विरासत का दूसरा नाम है जिस की डोर थामे मैं कई बार टूटने और पराजित होने के बाद भी हर बार स्वप्न संसार में दाखिल होकर स्वप्नजीवी होने के सपने को फिर से प्रस्फुटित और विकसित होते हुए देखती हूं.