रोशनी की नदी
शून्य के केन्द्र तक का सफ़र किस कदर आंसुओं असफ़लता और अकेलेपन से भरा है, इसे वही ठीक से बता सकता है जो कि उन कठिन दुर्गम मार्गों से गुजरा है, और उनका साक्षी भी रहा है. पर उनके जीवनों के अनुभव हमारे जीवनों को कुछ अधिक समृद्ध और सुन्दर बना देते हैं. वे हमें जीवन के उन आयामों और पक्षों से हमारा साक्षात्कार कराते है जिनकी कल्पना अबसे कुछ पल पहले तक असंभव प्रतीत हो रही थी. उन्हें, उन लोगों ने अपने अदम्य साहस और अपूर्व हौसले और आत्मविश्वास के बूते संभव और साकार कर दिखाया और कृष्ण पक्ष के अंधेरी रातों का उज्जवल आयाम लोगों के समक्ष रखने का जोखिम उठाया जिसे लोग अक्सर अन्देखा करते है और जो अंधकार को सिर्फ़ बुराई का गढ़ या पर्याय मानते रहे हैं. पर अंधकारमय जीवनों में भी छुपे हैं कल्पनातीत संभावनाओं से सृजित सुन्दर सपनों के इन्द्रधनुषी पुलों व सेतुओं के अनगिन जाल जो घने कोहरों के धुंधलके में डूबी जिंदगियों में विद्युत बन उजास फ़ैलाते हैं और न जाने कितनी ही जिंदगियों को रोशन कर जाते हैं.
साधारण लोगों की असाधारण कहानियों के सिरे गुमनामी के गर्त में समा जाते हैं, हम सबकी उपेक्षा, उदासीनता और उत्साह हीनता के बदौलत जिन पर एक से एक बहानों की लीपापोती करके अपने उत्तरदायित्व से पिंड छुड़ा लेते हैं, और इस तरह अन्जाने में ही हम रोज ही अपने मानव बने रहने के उत्तराधिकार को ठुकराते और गंवाते है. ऐसे कर्मठ और जुझारू लोगों को अभावों, उपेक्षा, उपहास, उपालंभ और तिरस्कार की अग्नि जलाकर राख में तब्दील नहीं करती बल्कि उन्हें रोशनी के एक अजस्त्र प्रवाहमान नदी बना देती है, जिसकी रोशनी में आज भी साधारण लोग अपना जीवन बिना किसी कड़वाहट के हंसी खुशी बिता देते है.
11 comments:
जीवन की उड़ानें स्वयं को साधे रहने के कष्ट से परे जीती हैं, नशे में सराबोर।
निश्चय ही,आप अध्यात्म के शून्य की बात कर रही हैं।
आपके लेखन में छुपे मर्म को समझने के लिए इसे दो बार पढ़ना पढ़ा.
गहराई भरा लेख
मैं कुंवर जी से सहमत हूँ ... मैंने भी लेख दो बार पढ़ा है .. सच में बहुत गहराई है ...
गहराई से लिखा है बहुत .. सच है साधारण मनुष्य की असीमित शक्ति का कुछ पता नहीं होता ....
आपके विचार काफी कुछ सोचने की प्रेरणा के साथ एक सन्तुष्टि भी देते हैं। सचमुच पीडा के बिना सृजन नही होता । पन्त जी ने भी तो --आह से उपजा होगा ज्ञान--कहा है ।जहर पीकर अमृत देने वाले शिव ही इस दुनिया को अनवरत सौन्दर्य दे रहे हैं । आपके गहन चिन्तन को नमन् ।
एक कामना--दीप जलें मन के आँगन में , जगमग कोना-कोना।
अँधियारा भी यूँही बन कर ,निकले सृजन सलोना ।
पर अंधकारमय जीवनों में भी छुपे हैं कल्पनातीत संभावनाओं से सृजित सुन्दर सपनों के इन्द्रधनुषी पुलों व सेतुओं के अनगिन जाल जो घने कोहरों के धुंधलके में डूबी जिंदगियों में विद्युत बन उजास फ़ैलाते हैं और न जाने कितनी ही जिंदगियों को रोशन कर जाते हैं.
Behad khoobsoorat khayalaat!
मानवीय भावनाएँ सहज ही छू गईं. उद्वेलित करने वाली विचारोत्तेजक पोस्ट.
विचारणीय प्रस्तुति...बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर रही है ये लेखनी.
पहली बार आना हुआ पर बहुत अच्छा लगा. शब्द जीवंत हैं, भाषा में लय और गति है, जीवन की और मन में कुछ अनबुझे से सवाल
"देखन में छोटे लगें,घाव करें गंभीर"
सोचने को मजबूर करती एक छोटी किन्तु सारगर्भित पोस्ट.
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