हर आती जाती सांस
उकेरती है / नए स्वप्न लहरियों का
अद्भुत तिलिस्मी संसार
हमारी उदास / अनमनी मनभित्तियों पर
भले ही न हो फ़ुर्सत
या बची हो सामर्थ्य
संसार की चकाचौंध से
धुंधलाई / निष्प्रभ आंखों में
उन्हें देख पाने की
....
जब / तब / बारंबार
टूटे / अधजले स्वप्नों का मलबा
अक्सर / सेंध मार
किसी चोर दरवाजे से
प्रवेश कर
धराशायी कर देता है
सभी वहमों के
सूक्ष्म महीन तानों बानों को
दबे ढके रहते है जिनमें
अक्सर / हम सब के संसार
....
फ़िर भी / कभी कभार
कौंध जाती है उनमें भी
रह रह कर
भूले बिसरे / आधे अधूरे सपनों के
बुझती चिंगारियों का क्षणिक उजास
...
जो ठहर जाता है / कुछ पल के लिए
उमड़ते / फ़ेनिल काल प्रवाह में
किसी झिलमिलाते प्रकाशस्तंभ सा
टेढ़े मेढ़े रास्तों के मकड़ जाल से
खोई हुई / रूठ कर नींद में डूबी हुई
मंजिलों का / पता / दिशा देता
फ़िर करता आह्वान / किसी नए सफ़र का
........
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उकेरती है / नए स्वप्न लहरियों का
अद्भुत तिलिस्मी संसार
हमारी उदास / अनमनी मनभित्तियों पर
भले ही न हो फ़ुर्सत
या बची हो सामर्थ्य
संसार की चकाचौंध से
धुंधलाई / निष्प्रभ आंखों में
उन्हें देख पाने की
....
जब / तब / बारंबार
टूटे / अधजले स्वप्नों का मलबा
अक्सर / सेंध मार
किसी चोर दरवाजे से
प्रवेश कर
धराशायी कर देता है
सभी वहमों के
सूक्ष्म महीन तानों बानों को
दबे ढके रहते है जिनमें
अक्सर / हम सब के संसार
....
फ़िर भी / कभी कभार
कौंध जाती है उनमें भी
रह रह कर
भूले बिसरे / आधे अधूरे सपनों के
बुझती चिंगारियों का क्षणिक उजास
...
जो ठहर जाता है / कुछ पल के लिए
उमड़ते / फ़ेनिल काल प्रवाह में
किसी झिलमिलाते प्रकाशस्तंभ सा
टेढ़े मेढ़े रास्तों के मकड़ जाल से
खोई हुई / रूठ कर नींद में डूबी हुई
मंजिलों का / पता / दिशा देता
फ़िर करता आह्वान / किसी नए सफ़र का
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6 comments:
फ़िर भी / कभी कभार
कौंध जाती है उनमें भी
रह रह कर
भूले बिसरे / आधे अधूरे सपनों के
बुझती चिंगारियों का क्षणिक उजास
...
बहुत सही कहा है...जिंदगी से सपने कभी अलग नहीं हो पाते,चाहे वे पूरे हों या नहीं..और ये आधे अधूरे सपने ही देते हैं आगे चलते रहने कि प्रेरणा...बहुत सुन्दर प्रस्तुति. आभार
bahut sundar prastuti .........ek sampoorna aashavaadi kavita..........behtarin
कैलाश जी,
अना जी,
आप सभी का रचना सराहने और अपना स्नेहाशीष देकर उत्साहवर्द्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. आशा है कि आगे भी आप सभी का स्नेहाशीष, सहयोग और मार्गदर्शन मिलता रहेगा. आभार.
सादर
डोरोथी.
bahut khoobsurat rachna ...
जो ठहर जाता है / कुछ पल के लिए
उमड़ते / फ़ेनिल काल प्रवाह में
किसी झिलमिलाते प्रकाशस्तंभ सा
टेढ़े मेढ़े रास्तों के मकड़ जाल से
खोई हुई / रूठ कर नींद में डूबी हुई
मंजिलों का / पता / दिशा देता
फ़िर करता आह्वान / किसी नए सफ़र का
bahut sundar ....
डोरोथी जी बहुत सुंदर अलग सी लगी आपकी ये कविता ।
टेढ़े मेढ़े रास्तों के मकड़ जाल से
खोई हुई / रूठ कर नींद में डूबी हुई
मंजिलों का / पता / दिशा देता
फ़िर करता आह्वान / किसी नए सफ़र का
@क्षितिजा जी,
@Mrs. Asha Joglekar ji,
रचना सराहने और अपना स्नेहाशीष देकर उत्साहवर्द्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. आशा है कि आगे भी आप सभी का स्नेहाशीष, सहयोग और मार्गदर्शन मिलता रहेगा. आभार.
सादर
डोरोथी.
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