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पी जाए हमारे भी हिस्से का जहर
नीलकंठ बन जाए कोई दूसरा
काश आ जाए कोई दूसरा
........
ऊबे बैठे है तमाशाई सब
चमत्कार दिखला दे कोई दूसरा
काश आ जाए कोई दूसरा
........
भेड़ें हैं चल पड़ेंगे फ़ौरन
बस रहनुमा बन जाए कोई दूसरा
काश आ जाए कोई दूसरा
........
पूजेंगे बाद में बुत बनाकर
शहीद अभी हो जाए कोई दूसरा
काश आ जाए कोई दूसरा
........
अंधेरा है पर हिम्म्त नहीं है हममें
आग चुरा कर ला दे कोई दूसरा
काश आ जाए कोई दूसरा
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पी जाए हमारे भी हिस्से का जहर
नीलकंठ बन जाए कोई दूसरा
काश आ जाए कोई दूसरा
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ऊबे बैठे है तमाशाई सब
चमत्कार दिखला दे कोई दूसरा
काश आ जाए कोई दूसरा
........
भेड़ें हैं चल पड़ेंगे फ़ौरन
बस रहनुमा बन जाए कोई दूसरा
काश आ जाए कोई दूसरा
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पूजेंगे बाद में बुत बनाकर
शहीद अभी हो जाए कोई दूसरा
काश आ जाए कोई दूसरा
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अंधेरा है पर हिम्म्त नहीं है हममें
आग चुरा कर ला दे कोई दूसरा
काश आ जाए कोई दूसरा
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10 comments:
बिल्कुल जुदा अन्दाज़ है प्रस्तुति का……………सुन्दर रचना।
स्वार्थ से भरी मानसिकता वाले आज के ज़माने में कोई आएगा नील कंठ बनकर दुसरे का ज़हर पीने को? अपना बोझ अपने ही कंधे पर ढोना होगा. भावनाओं को शब्दों में सुंदरता से पिरोया है...सुन्दर प्रस्तुति..
achchhi kavita....swagat
सुंदर प्रस्तुति....
आपको
दशहरा पर शुभकामनाएँ ..
achhaa aahwaan hai
kaavya ke roop mei sandesh ki prastuti
padhne ko mn kartaa hai...
abhivaadan .
अपनी ही राख से पुनःजीवित होने का ऐसा सार्थक और मार्मिक प्रयास ...। आपकी कविताएं पढ कर गहरी टीस किन्तु त्रप्ति का अनुभव हुआ । इनकी व्याख्या करना आसान नही । मैं बार--बार पढना चाहूँगी ।
हर कोई दूसरों से पहल चाहता है..जैसे आप चाहते हैं ऐसा ही दूसरे भी. और खास तौर से इस तरह की पहल की चाहत तो नारी से पहले रखी जाती है तो कैसे होगी ये अभिलाषा पूरी ?
जुदा अंदाज़ अच्छा लगा.
एक बहुत बढ़िया विचार है इस कविता में इंसान के दोगले व्यक्तित्व की पडताल करता हुआ ।
ऊबे बैठे है तमाशाई सब
चमत्कार दिखला दे कोई दूसरा
काश आ जाए कोई दूसरा
क्या बात है डोरोथी जी. आज हर आदमी दूसरे का ही तो मुंह देखता रहता है. खुद पहल करने की कोशिश कितने करते हैं? बहुत सुन्दर कविता है. विजयादशमी की अनन्त शुभकामनाएं.
आप सभी सुधिजनों को मेरी रचना सराहने और उत्साहवर्धन एवं शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
आशा है आगे भी आपका स्नेह, सहयोग और मार्गदर्शन मिलता रहेगा.
सादर,
डोरोथी.
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