१.
धड़कन
बूढ़े बरगद की
निश्चल उच्छवास में
कैद है
पीड़ा और संताप से कराहती
धरती के
धड़कते दिल की
नन्हीं सी धड़कन
........
........
२.
आमंत्रण
हर
परिवर्तन
एक अवसर
एक आमंत्रण
जिंदगी के
उत्सव और नृत्य में
शामिल होने को
जिंदगी स्थिर नहीं
दायरों में
घूम रही है
अपने ही
नृत्य में
मस्त और डूबी
........
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धड़कन
बूढ़े बरगद की
निश्चल उच्छवास में
कैद है
पीड़ा और संताप से कराहती
धरती के
धड़कते दिल की
नन्हीं सी धड़कन
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२.
आमंत्रण
हर
परिवर्तन
एक अवसर
एक आमंत्रण
जिंदगी के
उत्सव और नृत्य में
शामिल होने को
जिंदगी स्थिर नहीं
दायरों में
घूम रही है
अपने ही
नृत्य में
मस्त और डूबी
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35 comments:
जिंदगी स्थिर नहीं
दायरों में
घूम रही है
अपने ही
नृत्य में
मस्त और डूबी
जिंदगी परिवर्तनशील है,होने वाले हर बदलाव को हमें सहर्ष स्वीकार करना चाहिए.
बेहद ख़ूबसूरत... जिन्दगी की लहरों और मस्ती में डूबी हुई रचना...
दोनो रचनायें बहुत सुन्दर और भावमय हैं। शुभकामनायें।
दोनों कवितायें, धड़कनी आमन्त्रण करती हुयीं।
आपकी कविता में अदभुत सम्प्रेषण भाव हैं !
कम शब्दों में इतनी गहन अभिव्यक्ति को मैं नमन करता हूँ !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
दोनों रचनाएँ गहन भाव लिए हुए ..ज़िंदगी दायरों के बीच ही घूमती रह जाति है ...बहुत खूबसूरत ..
धडकनओ के आमन्त्रण पर ही ज़िन्दगी मचलती है……………बहुत ही सुन्दर रचनाये…………।गहरे भाव लिये।
बहुत ही सुन्दर क्षणिकाएं हैं....अति सुन्दर..:)
Dorothy beshak rachnaayen choti chhoti hai par behad prabhaav shali.. shubhkaamnayen..
आपके संकल्प और चयन की क्षमता से आपकी रचनाधर्मिता ओत-प्रोत है। संश्लिष्ट भाषा का उत्तम उदाहरण पेश किया है आपने। अंग्रेज़ी में कहना चाहूंगा
Dorothy is back. Keep it up!
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
विचार::आज महिला हिंसा विरोधी दिवस है
नए मुहावरे की नन्हीं कविताएँ अच्छी लगीं.
गहन भाव लिए हुए दोनों रचनाएँ
दोनों रचनाएँ हृदयस्पर्शी ......
जिंदगी स्थिर नहीं
दायरों में
घूम रही है
अपने ही
सच में ऐसा ही है...अच्छा होता हम इन दायरों से बहार निकल पाते ...और पूरी दुनिया को बिना किसी भेद भाव के देख पाते बहुत सुंदर
चलते चलते पर आपका स्वागत है
bahut sunder.
bahut sundar likha hai ji
padhkar gahra philosphical approch ki baat man me aayi zindagi ke liye ...
bahut sundar rachna
badhayi
vijay
kavitao ke man se ...
pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com
छोटी पर मन को छूती रचनाएँ |बधाई
आशा
सुन्दर रचनाएँ ...
दोनों रचनाएँ बेहतरीन हैं ... छोटा सा कलेवर में गहरा भाव समेटे हुए ... इनमें भी पहली वाली बहुत अच्छी लगी ...
जिंदगी स्थिर नहीं
दायरों में
घूम रही है
अपने ही
नृत्य में
मस्त और डूबी ...
बहुत खूब ... सच में जिंदगी का कुछ भी निर्धारित नहीं होता ... वैसे सच पूछो तो होना भी नहीं चाहिए ....
सुन्दर और भाव प्रवण क्षणिकाये . आभार
वाह...
अतिसुन्दर !!!
गहन भावों की प्रभावशाली अभिव्यक्ति दर्शनीय है...
दोनों ही रचनाएं मन को बाँधने वाली हैं...
धरती की धड़कन को पहचानती ...
और परिवर्तन के आमंत्रण को महसूसती ...
सुन्दर रचनायें!
अपने ही
नृत्य में
मस्त और डूबी हुई एक सन्देश देती रचना
बेहद ख़ूबसूरत... जिन्दगी की लहरों और मस्ती में डूबी हुई रचना...
देखन में छोटी लगें पर घाव करें गंभीर , बहुत प्यारी रचना......
उम्दा क्षणिकाएं...संवाद,सम्वेदना और शिल्प तीनो दमदार...
आभार
डा.अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com
www.meajeet.blogspot.com
जीवनचक्र,उसकी पीड़ा और उस पीड़ा से उपजे सुख की बहुत उम्दा कविताएँ।
सुन्दर क्षणिकाये !
बूढ़े बरगद की
निश्चल उच्छवास में
कैद है
पीड़ा और संताप से कराहती
धरती के
धड़कते दिल की
नन्हीं सी धड़कन
kuchh lines me hi aapne karah ko vyakt kar diya......:)
bahut khub!!
ज़िन्दगी स्6थिर नही
दायरों मे घूम रही है
अपने ही नृत्य मे मस्त डूबी हुयी।
उमदा जिन्दगी नामा। बधाई।
दोनों रचनाएँ कमाल की है ... बहुत खूब
बेहतरीन रचना...बहुत अच्छा लिखती हैं . ....
aaj pehli baar aapke blog per ayye hai bahut sunder likha ahi
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