मची है खलबली चांदनी की महफ़िल में,
सुना है आ पहुंचा नजदीक काफ़िला सूरज का.
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मिटने से लगे है सदियों पुराने दायरे अब अंधेरों के,
जबसे होकर गुजरा है बस्तियों से काफ़िला सूरज का.
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अंधेरों में जो घिरे बैठे थे खोए खोए,
ढूंढने आया है खुद चलकर उन्हें काफ़िला सूरज का.
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लेके आया है वो एक समंदर रोशनी का,
जो भी डूबेगा उसी का हो गया काफ़िला सूरज का.
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कैद कर लाया है वो रफ़्तार एक बवंडर का,
अब न रूकेगा चल पड़ा है जब काफ़िला सूरज का.
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तिनकों से उखड़ जाएंगे जड़ समेत ये बरगद सारे,
रूख हवाओं का जब बदल देगा काफ़िला सूरज का.
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सुना है आ पहुंचा नजदीक काफ़िला सूरज का.
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मिटने से लगे है सदियों पुराने दायरे अब अंधेरों के,
जबसे होकर गुजरा है बस्तियों से काफ़िला सूरज का.
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अंधेरों में जो घिरे बैठे थे खोए खोए,
ढूंढने आया है खुद चलकर उन्हें काफ़िला सूरज का.
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लेके आया है वो एक समंदर रोशनी का,
जो भी डूबेगा उसी का हो गया काफ़िला सूरज का.
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कैद कर लाया है वो रफ़्तार एक बवंडर का,
अब न रूकेगा चल पड़ा है जब काफ़िला सूरज का.
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तिनकों से उखड़ जाएंगे जड़ समेत ये बरगद सारे,
रूख हवाओं का जब बदल देगा काफ़िला सूरज का.
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26 comments:
सोचा की बेहतरीन पंक्तियाँ चुन के तारीफ करून ... मगर पूरी नज़्म ही शानदार है ...आपने लफ्ज़ दिए है अपने एहसास को ... दिल छु लेने वाली रचना ...
.....अपनी तो आदत है मुस्कुराने की !
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
मची है खलबली चांदनी की महफ़िल में,
सुना है आ पहुंचा नजदीक काफ़िला सूरज का.
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मिटने से लगे है सदियों पुराने दायरे अब अंधेरों के,
जबसे होकर गुजरा है बस्तियों से काफ़िला सूरज का.
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amazing
मिटने से लगे है सदियों पुराने दायरे अब अंधेरों के,
जबसे होकर गुजरा है बस्तियों से काफ़िला सूरज का.
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Kya kamaal kaa likha hai!
बहुत अच्छी ग़ज़ल।
ये शेर खास तौर पर पसंद आया-
मची है खलबली चांदनी की महफिल में
सुना है आ पहुंचा नजदीक काफिला सूरज का।
तिनकों से उखड़ जाएंगे जड़ समेत ये बरगद सारे,
रूख हवाओं का जब बदल देगा काफ़िला सूरज का.
बहुत अच्छी ग़ज़ल ...
उमीदो के उजास से लबालब है आज की आपकी रचना.
दुआ है की आप की जिंदगी को खुशियों से भर दे ये काफिला सूरज का.
बहुत सुन्दर कविता. शुभकामनाएं
बहुत सुंदर भावों और आशाओं से भरी रचना. सभी पंक्तियाँ उम्मीदों को बल देती हैं.
मची है खलबली चांदनी की महफ़िल में,
सुना है आ पहुंचा नजदीक काफ़िला सूरज का.
गज़ब की पंक्तियाँ हैं ..
यहां सूरज अपने मूल अर्थ में भी है और प्रतीकात्मक अर्थ में भी। उसकी आभामय उपस्थिति स्वतः दर्ज़ होनी स्वाभाविक। मौलिक प्रयास।
सूरज के काफिला की तरह तेज़ रचना ......... अच्छा लगा आपको पढ़ना . बधाई .....
मची है खलबली चांदनी की महफ़िल में,
सुना है आ पहुंचा नजदीक काफ़िला सूरज का...
वाह ... क्या खूबसूरत पंक्तियाँ हैं ... बहुत खूब ...
अंधेरों में जो घिरे बैठे थे खोए खोए,
ढूंढने आया है खुद चलकर उन्हें काफ़िला सूरज का.
बहुत सुंदर आशावादी सोच को साकार करती कविता ........
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डोरोथी जी,
बेहद सुन्दर रचना। आपके खूबसूरत मन की तरह !
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बेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति!
सादर
वाह वाह! क्या खूब लिखा है । उम्मीदो से लबरेज़ रचना सीधे दिल मे उतरती है।
सूरज के काफिले में शामिल होने के लिये सहनशीलजन कहाँ पाये जायेंगे।
ज़ज़्बा मज़बूत है तो चांदनी भी रहेगी
और सूरज का काफ़िला भी उसे ढोकर ले जाएगा।
सुन्दर रचना
सूरज के काफिले के आने से खलबली दरअसल अँधेरे की महफ़िल में मचनी चाहिए,चांदनी की महफ़िल में नहीं. सूरज की रोशनी और चाँद की चांदनी , हमारी दुनिया के लिए दोनों की ज़रूरत है. बहरहाल आपकी इस रचना में दिल की गहराइयों से निकली भावनाओं की अनुगूंज साफ़ सुनी जा सकती है. एक अच्छी कविता के लिए बधाई .
तिनकों से उखड़ जाएंगे जड़ समेत ये बरगद सारे,
रूख हवाओं का जब बदल देगा काफ़िला सूरज का...
बहुत खूब ... सूरज का ये रूप भी लाजवाब है ... बहुत अच्छी रचना है ....
बहुत सुन्दर ग़ज़ल , आप मोती चुन कर लाती है . आभार .
प्रेरणाप्रद है काफिला सूरज का।
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जानिए गायब होने का सूत्र।
….ये है तस्लीम की 100वीं पहेली।
"मची है खलबली चांदनी की महफ़िल में,
सुना है आ पहुंचा नजदीक काफ़िला सूरज का"
सुन्दर रचना है
उम्दा रचना डोरोथी जी.. शुक्रिया इस सुन्दर गज़ल को हमसे शेयर किया... :)
बहुत सुंदर नज्म है सारे के सारे शेर खूबसूरत पर
अंधेरों में जो घिरे बैठे थे खोए खोए,
ढूंढने आया है खुद चलकर उन्हें काफ़िला सूरज का.
बहुत ही अच्छा लगा ।
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