यह मेरी पुरानी कविता "आजादी के नाम एक पाती" है जिसे मैंने पिछले साल अपने ब्लाग पर पोस्ट किया था. आज मैं फ़िर से अपनी इस कविता को आप सबके साथ साझा कर रही हूं...
आजादी के नाम एक पाती
मैं
हवा हूं
धूप हूं
पानी हूं
....
गुदगुदाती हूं हवा बन
अपनी उंगलियों से
किसी बच्चे का
कोमल सा गाल
....
छू लेती हूं फिर धूप बन
अंधेरों से घिरे
हर अनाम चेहरों को
....
टपक पड़ती हूं बूंदे बन
फूलों पर, पत्तियों पर
नन्हीं कोंपलों, अंकुरों पर
....
चाहती हूं
....
श्वास बनू मैं
रक्त बन बहूं शिराओं में
मुस्कान सी बिखर बिखर जाऊं
....
मैं
हवा
धूप
पानी
....
मत रोको मुझे
मैं रूकना नहीं चाहती
मत बांटो मुझे
मै बंटना भी नहीं चाहती
मत बांधो मुझे
मैं बंधना भी नहीं चाहती
....
मैं
हवा
धूप
पानी
....
मेरा न रंग कोई
न कोई रूप मेरा
न कोई भाषा मेरी
न कोई धर्म मेरा
....
मैं
हवा
धूप
पानी
....
फिर क्यों बांध लेना चाहते हो
मुझे क्यों तुल जाते हो बांटने को
क्यों उठा देते हो हर जगह पर दीवारें
क्यों बढ़कर बीच रास्ते में रोक लेते हो
....
मैं
हवा
धूप
पानी
....
मैं स्वछंद निर्द्वन्द
मैं निर्मल उजली
मैं निर्भय शुचि
....
मैं
हवा
धूप
पानी
....
परिचित, अपरिचित
देश, विदेश
हर सीमा के परे
हर बंधन को तोड़
बहती हूं / चलती हूं
....
मैं
हवा
धूप
पानी
....
मत रोको मुझे
मत बांधो मुझे
मत बांटो मुझे
....
....
आजादी के नाम एक पाती
मैं
हवा हूं
धूप हूं
पानी हूं
....
गुदगुदाती हूं हवा बन
अपनी उंगलियों से
किसी बच्चे का
कोमल सा गाल
....
छू लेती हूं फिर धूप बन
अंधेरों से घिरे
हर अनाम चेहरों को
....
टपक पड़ती हूं बूंदे बन
फूलों पर, पत्तियों पर
नन्हीं कोंपलों, अंकुरों पर
....
चाहती हूं
....
श्वास बनू मैं
रक्त बन बहूं शिराओं में
मुस्कान सी बिखर बिखर जाऊं
....
मैं
हवा
धूप
पानी
....
मत रोको मुझे
मैं रूकना नहीं चाहती
मत बांटो मुझे
मै बंटना भी नहीं चाहती
मत बांधो मुझे
मैं बंधना भी नहीं चाहती
....
मैं
हवा
धूप
पानी
....
मेरा न रंग कोई
न कोई रूप मेरा
न कोई भाषा मेरी
न कोई धर्म मेरा
....
मैं
हवा
धूप
पानी
....
फिर क्यों बांध लेना चाहते हो
मुझे क्यों तुल जाते हो बांटने को
क्यों उठा देते हो हर जगह पर दीवारें
क्यों बढ़कर बीच रास्ते में रोक लेते हो
....
मैं
हवा
धूप
पानी
....
मैं स्वछंद निर्द्वन्द
मैं निर्मल उजली
मैं निर्भय शुचि
....
मैं
हवा
धूप
पानी
....
परिचित, अपरिचित
देश, विदेश
हर सीमा के परे
हर बंधन को तोड़
बहती हूं / चलती हूं
....
मैं
हवा
धूप
पानी
....
मत रोको मुझे
मत बांधो मुझे
मत बांटो मुझे
....
....
55 comments:
देश के प्रति समर्पण के भावों से भरी इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें...
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 15-08-2011 को चर्चा मंच http://charchamanch.blogspot.com/ पर भी होगी। सूचनार्थ
फिर क्यों बांध लेना चाहते हो
मुझे क्यों तुल जाते हो बांटने को
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति , सार्थक पोस्ट , आभार
बहुत सुन्दर रचना , खूबसूरत प्रस्तुति .
स्वतन्त्रता दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें
'मैं हवा, धूप, पानी....'स्वतंत्रता के सभी प्रतीक. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती.....jai hind....
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
HAPPY INDEPENDENCE DAY!
bahut hee sundar
मत रोको मुझे
मैं रूकना नहीं चाहती
मत बांटो मुझे
मै बंटना भी नहीं चाहती
मत बांधो मुझे
मैं बंधना भी नहीं चाहती ... mujhe jeene do , vande matram
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और ढेर सारी बधाईयां
"श्वास बनू मैं
रक्त बन बहूं शिराओं में
मुस्कान सी बिखर बिखर जाऊं."
सुंदर सन्देश देती पाती.
स्वतन्त्रता दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ.
अद्भुत कविता, भावों को शब्द और लय ने समुचित सहारा दिया है।
khoobsurat laybadhh prastuti.
मर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण काव्यपंक्तियों के लिए कोटिश: बधाई !
स्वतन्त्रता दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ.
यौमे आज़ादी की सालगिरह मुबारक .
मत रोको मुझे
मैं रूकना नहीं चाहती
मत बांटो मुझे
मै बंटना भी नहीं चाहती
मत बांधो मुझे
मैं बंधना भी नहीं चाहती .
जिसे फिट आ जाए उसे फांसी का फंदा ,बाकी सबको आज़ादी है ,यह यौमे आज़ादी है .बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति ,हवा ,पानी का सार्थक बिम्ब छूता है मन को आज़ादी के मानी भी समझाता है .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
रविवार, १४ पानी २०११
इसके जिन्होनें पढ़ा है .....
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
Sunday, August 14, 2011
चिट्ठी आई है ! अन्ना अह की PM के नाम !
मैं स्वछंद निर्द्वन्द
मैं निर्मल उजली
मैं निर्भय शुचि
....
मैं
हवा
धूप
पानी
....
परिचित, अपरिचित
देश, विदेश
हर सीमा के परे
हर बंधन को तोड़
बहती हूं / चलती हूं
....
adbhut kavita sachmuch ,naye andaaj liye huye .swatanrata divas ki badhai .
सुन्दर अभिव्यक्ति .स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाये
....सुन्दर प्रस्तुती
स्वतन्त्रता की 65वीं वर्षगाँठ पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
मत रोको मुझे
मैं रूकना नहीं चाहती
मत बांटो मुझे
मै बंटना भी नहीं चाहती
मत बांधो मुझे
मैं बंधना भी नहीं चाहती
बहुत अच्छी कविता...
हवा, पानी, धूप पर सब का बराबर अधिकार है।
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
आपकी कविता अच्छी लगी |स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाएं
मैं
हवा हूं
धूप हूं
पानी हूं
....
गुदगुदाती हूं हवा बन
अपनी उंगलियों से
किसी बच्चे का
कोमल सा गाल
....
छू लेती हूं फिर धूप बन
अंधेरों से घिरे
हर अनाम चेहरों को
....
टपक पड़ती हूं बूंदे बन
फूलों पर, पत्तियों पर
नन्हीं कोंपलों, अंकुरों पर
....
आजादी की इससे सुंदर व्याख्या क्या होगी । बधाई इस सुंदर रचना के लिये और स्वतंत्रता दिवस पर भी ।
हे मातृभूमि शत कोटि नमन!!
Happy Independence day.
मत रोको मुझे
मैं रूकना नहीं चाहती
मत बांटो मुझे
मै बंटना भी नहीं चाहती
मत बांधो मुझे
मैं बंधना भी नहीं चाहती....
सुन्दर बिम्ब प्रयोग... सार्थक संकेत... खुबसूरत भाव... प्रभावी रचना...
राष्ट्र पर्व की सादर बधाईयाँ....
मत रोको मुझे
मैं रूकना नहीं चाहती
मत बांटो मुझे
मै बंटना भी नहीं चाहती
मत बांधो मुझे
मैं बंधना भी नहीं चाहती
बहुत सुन्दर. शुभकामनाएं. आज़ादी की सालगिरह मुबारक़ हो.
मत रोको मुझे
मैं रूकना नहीं चाहती
मत बांटो मुझे
मै बंटना भी नहीं चाहती
मत बांधो मुझे
मैं बंधना भी नहीं चाहती .
Waah...sach kitni sunder panktiyan eachi hain....
आपका अंदाज़ अलग है ....
शुभकामनायें !
फिर क्यों बांध लेना चाहते हो
मुझे क्यों तुल जाते हो बांटने को
क्यों उठा देते हो हर जगह पर दीवारें
क्यों बढ़कर बीच रास्ते में रोक लेते हो
waha bahut khub
बहुत ही सुन्दर ...आभार
वाह बेहतरीन !!!!
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं….!
मत रोको मुझे
मैं रूकना नहीं चाहती
मत बांटो मुझे
मै बंटना भी नहीं चाहती
मत बांधो मुझे
मैं बंधना भी नहीं चाहती
वास्तविक आज़ादी तो यही है ......
बहुत ही भावप्रवण अभिव्यक्ति |बधाई
आशा
बहुत सुन्दर और सार्थक रचना || आजादी की 65वीं वर्षगाँठ पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ
कोमल सी कविता... बहुत सुन्दर... सार्थक अभिव्यक्ति !
desh- prem ko pravahit karti rachna, aapka abhar.
बहुत खूबसूरत और भाव मयी रचना
गुदगुदाती हूं हवा बन
अपनी उंगलियों से
किसी बच्चे का
कोमल सा गाल
मयूर-पंखी पंक्तियाँ.अति-सुंदर.
कविता सचमुच में दिल को छूने वाली है..साथ ही आजाद होने का अहसास भी दिलाती है...
नमस्कार....
बहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें
मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में पलकें बिछाए........
आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"
इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्
1- MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
2- BINDAAS_BAATEN: रक्तदान ...... नीलकमल वैष्णव
3- http://neelkamal5545.blogspot.com
गुदगुदाती हूं हवा बन
अपनी उंगलियों से
किसी बच्चे का
कोमल सा गाल
भावमय करते शब्दों के साथ सुन्दर अभिव्यक्ति ।
पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए!
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
सच है ये दीवारें इंसान की बनाई हुयी हैं ... आज इंसान ने उनकी आज़ादी पर भी पहरे लगा दिए हैं ... लाजवाब रचना है ..
bahut khoobsurat bhavpoorn rachana...
मत रोको मुझे
मैं रूकना नहीं चाहती
मत बांटो मुझे
मै बंटना भी नहीं चाहती
मत बांधो मुझे
मैं बंधना भी नहीं चाहती .........सच कहा आपने बांधने से सृजन रुक जाता इसलिए मुझे आज़ाद ही आगे बढ़ने दो :)
खूबसूरत रचना |
मत रोको मुझे
मत बांधो मुझे
मत बांटो मुझे
....
कोमल अहसासों से परिपूर्ण बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...
बहुत सुन्दर और सार्थक रचना |स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
पंछी नदिया पवन के झोके.
कोई सरहद इन्हें न रोके.
सोचो तुमने हमने क्या पाया.
इन्सां होके.
आपका ब्लॉग बहुत क्रिअटिव और सुन्दर लगा.
Keep it up!:-)
मत रोको मुझे
मैं रूकना नहीं चाहती
मत बांटो मुझे
मै बंटना भी नहीं चाहती
मत बांधो मुझे
मैं बंधना भी नहीं चाहती .
Bahut sundar bhav...bahut2 badhai..
डोरोथी जी, अब तो हवा धुप पानी भी बिक रहे हैं ...
आपकी रचना बहुत सुन्दर है ...
आज़ादी के सही मायनों का उदघोष है इस कविता है !
दोरोती जी ,आपका बहुत आभार ,आज हमें आजादी के सच को समझना ज़रूरी हो गया है !
फिर क्यों बांध लेना चाहते हो
मुझे क्यों तुल जाते हो बांटने को
क्यों उठा देते हो हर जगह पर दीवारें
क्यों बढ़कर बीच रास्ते में रोक लेते हो
नमस्कार....
बहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें
मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में........
आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"
इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्
वहा से मेरे अन्य ब्लाग लिखा है वह क्लिक करके दुसरे ब्लागों पर भी जा सकते है धन्यवाद्
MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
मैं
हवा
धूप
पानी
....
मत रोको मुझे
मत बांधो मुझे
मत बांटो मुझे
....
kya saman baandha hai......wah.
sundar paati...
छुपे रहते है
उम्मीद के बीज
जिनसे
फ़िर से
जन्मती और पनपती हैं
जिंदगी उम्मीद और सपने
... ......sahaj . sundar,,
आपका ब्लाग मेरे प्रिय ब्लाग्स में होते हुए भी आपकी बहुत सारी रचनाएं पढने से वंचित हूँ क्योंकि आपका ब्लाग मेरी लिस्ट में नही था और अनुशरण भी नही किया इसलिये ध्यान नही दे सकी । अब कर रही हूँ ।
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