अपनी अंतहीन यात्राओं में
यहां से वहां
इधर से उधर
गुजरते हुए
तूफ़ान देखता है कोई सपना
जाने
कहां ले जाता है
समेटकर सबको
उन सूखे पत्तों
और टूटे ख्वाबों को
शायद
किसी नई दुनिया में
किसी अनजान शहर
या फ़िर अनजान नगर में
...

जहां
झरता है
चारो ओर
हर वक्त
सूखे पत्तों का चूरा
और
टूटे ख्वाबों का मलबा
...

उस सूने उजाड़
नगर या शहर में
तूफ़ान
बहा ले आता है
अपने संग
घुटन भरी
श्वासों में
आसुओं में
छिपी नमी
जो बरसती है
बारिश की
भीनी भीनी
फ़ुहार बनकर
और बंजर जमीं में भी
बिछ जाती है
हरियाली की मखमली चादर
नवाकुरों कोपलों
और कलियों का
पालना बनकर

...
...