मची है खलबली चांदनी की महफ़िल में,
सुना है आ पहुंचा नजदीक काफ़िला सूरज का.
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मिटने से लगे है सदियों पुराने दायरे अब अंधेरों के,
जबसे होकर गुजरा है बस्तियों से काफ़िला सूरज का.
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अंधेरों में जो घिरे बैठे थे खोए खोए,
ढूंढने आया है खुद चलकर उन्हें काफ़िला सूरज का.
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लेके आया है वो एक समंदर रोशनी का,
जो भी डूबेगा उसी का हो गया काफ़िला सूरज का.
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कैद कर लाया है वो रफ़्तार एक बवंडर का,
अब न रूकेगा चल पड़ा है जब काफ़िला सूरज का.
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तिनकों से उखड़ जाएंगे जड़ समेत ये बरगद सारे,
रूख हवाओं का जब बदल देगा काफ़िला सूरज का.
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