‘जीरो वॅाट’ की फीकी बुझी रोशनी वाली जिंदगी का बोझ कमजोर कंधों पर डाले अपने क्लांत हाथों से हांफते कराहते चोटी तक पत्थर पहुंचाने के प्रयत्न में जुटे हुए हैं सदियों से अभिशप्त ‘सिसिफस’ के वंशज... यह जानते हुए भी कि चोटी पर पहुंचते ही पत्थर नीचे की ओर लुढ़क पड़ेगा पर उन्हें पत्थर को चोटी पर पहुंचाना ही है चाहे जो भी हो. इतना धैर्य इतनी कर्मठता शायद उन्हें इसीलिए ही मिली है ताकि वे समूचे संसार का बोझ बिना किसी शिकवे या शिकायत के अपने ऊपर उठा लें और बिना किसी प्रतिफल की इच्छा किए अपने छोटे से संसार में मगन रहें इस अनास्था की महारात्रि में.... प्रज्जवलित दीपों की तरह..... किन्हीं दीप स्तंभों की तरह.....