कैसी भी कर्कश धुनें हो गूंजती हमारी बेसुरी जिंदगियों में
संमदर तो उन में से भी एक खुशनुमा गीत बना लेता है
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भले न हो सधी सधाई जिंदगियों में उसकी कोई खास जगह
संमदर जानता है सब कुछ फ़िर भी दिलों में किसी ख्वाब सा धड़कता है
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रास्ता बदल लें लाख कतराकर लोग उसे भूल जाने की कोशिश में
संमदर मगर फ़िर भी हर मोड़ पर ठहर कर उनका इंतजार करता है
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जवाबों की भूलभुलैया में न जाने क्यों अक्सर भटकते रहते है
लोग नहीं जानते कि सवालों के सही जवाब समन्दर के पास ही होते हैं
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