एक रूकी थमी जिंदगी

ऐसा लगता है कि जिदगी किसी छोटे से उनींदे अनाम स्टेशन पर बरसों से रूकी हुई है और उसे आज तक उस सिग्नल का इंतजार है जो उसे उस वीरान और खामोश जगह को छोड़कर कहीं और जाने की इजाजत देगी. पर काश ऐसा हो कि वो समय कुछ जल्दी ही आ जाए. कहीं ऐसा न हो कि गाड़ी को सिग्नल मिलने में काफ़ी देर हो जाए और उसकी खुद को वहां से बाहर निकालकर कहीं दूर ले जाने की क्षमता भी धीरे धीरे चुकते हुए कभी खत्म न हो जाए. और तो और बरसों धूल धूप और बरसात सहते सहते जंग खा जाए और हिलने डुलने के लायक भी न बचे. और फिर जीवन भर उसी स्टेशन पर खड़े रहकर वहां से गुजरने वाली हर आती जाती गाड़ियों को हसरत भरी निगाहों से ताकते रहे.

ऐसा नहीं है कि उन्हें देखकर ईषर्या नहीं होती. पर धीरे धीरे मन काफ़ी सारी बातों या चीजों का आदी हो जाता है और मन में उठने वाली हर लहर भी अंतत मन की गहराईयों में विलीन हो जाती है. आस पास का गतिमान जीवन किसी चलचित्र सा दिन रात आंखों के सामने से गुजरता रहता है और मन ठगा सा सब कुछ चुपचाप देखने को विवश हो जाता है. ऐसा लगता है कि आस पास से गुजरने वाली गाड़ियां उसे मुंह चिढ़ाती हुई वहां से गुजरती चली जा रही है और वो चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता.

पर ऐसे में भी मन अगर निराशा के भंवर मे डूबते उतराते भी उम्मीद का दामन न छोड़े तो उसे उस स्थिर जंगम स्थिति में भी आनंद की अनुभूति हो सकती है. क्योंकि भले ही रूकी हुई जिंदगी उसकी जिंदगी में गति और रफ़्तार का आयाम जोड़ पाने मे असमर्थ प्रतीत हो पर इसका मतलब ये नहीं कि जिंदगी के पास उसे देने को कुछ बचा ही नहीं. और खुद उस की जिंदगी भी बदरंग या बेमानी हो गई है ऐसी बात भी नहीं होती हालांकि उसके समेत बाकी सभी लोगों को कुछ ऐसा ही लगता रहता है. ये अलग बात है कि ऐसा कुछ भी होने के बाद मन में यही विचार रह रह के उमड़्ते घुमड़्ते रहते है कि वो कैसा अभागा मनुष्य है कि जब उसकी लेने बारी आई तो जिंदगी की झोली खाली निकली.

पर वास्तविकता ठीक इस के विपरीत है क्योंकि जिंदगी अपने दरवाजे से किसी को भी खाली हाथ नही लौटाती. न ही एक बार किसी को कुछ देकर उस का खजाना खाली हो जाता है. अगर ऐसा नहीं होता जिंदगी में जो कुछ भी एक बार घट जाता वही हमारी प्रथम और अतिम परिणिति भी होता. और जिंदगी में फिर कुछ कहने सुनने देखने गुनने की गुंजाईश ही न बचती. जीवन में असफल और पराजित मनुष्यों के पास भविष्य के लिए उम्मीद रखने लायक कोई बात ही नहीं बचती.

पर हताशा के अतल अंधकूप से ही उपजते हैं रोशनी के झिलमिलाते फ़व्वारे और वहीं से उपजते है मीठे मधुर गीत क्योंकि जिंदगी ऐसी ही परिस्थितियों में जीने वालों के दिलों के किसी कोने में चुपचाप आशा और उम्मीद के दीप जलाती रहती है कि कभी तो उनकी रोशनी उनकी सूनी अंधेरी राहों को आलोकित करेगी और उन के पीड़ा और असह्य दुख से सूखे उदास और मुर्झाए चेहरों पर सुख और खुशी की नन्ही उंगलिया दस्तक देगी. क्योंकि अक्सर यही देखा गया है कि हम थक हारकर भाग्य के भरोसे निष्चेष्ट बैठ जाते है पर जिंदगी ऐसा कुछ भी नहीं करती. वो हमारे लिए नित नए नए अवसर सपनों और संभावनाओं के इंद्रधनुषी संसार की सृष्टि में जुटी रहती है जिसका अक्षय भंडार कभी नही घटता. घटाटोप अंधेरों में डूबी और खामोशी की चादर ओढ़े सोई जिंदगियों के दिलों में से ही उम्मीदों के बीज या अंकुर नई नई अंतर्दृष्टियो संवेदनाओं और समझबूझ के रूप में फूटकर बाहर निकलती है जहां उन्हें अपने आस पास की दुनिया को देखने के लिए सूक्ष्म और पैनी दृष्टि विकसित करने के पर्याप्त अवसर मिलते हैं ताकि उनकी रोशनी में अंतर्विरोधों और विरोधाभासों में उलझी दुनिया को स्पष्ट रूप से देखा जा सके.

ऐसा भी तो हो सकता है कि जिंदगी उनके बहाने शायद उन लुप्त सिरों या कड़ियों को तलाश रही है जो उन स्थानों या जगहों में मौजूद तो जरूर है पर किसी की अभी तक उस पर नजर नहीं पड़ी है या आस पास से गुजरने वाले लोग जल्दबाजी में उसे देखने या समझने से चूक गए हो. पर हो सकता है कि कोई नई संवेदनाओं से लैस व्यक्ति या लोगों का समूह वहां से गुजरे और उनमें होती हल्की हल्की सुगबुगाहटों हलचलों और आहटों के मूक संसार को शब्द दें. और वे लोग उनके भीतर होने वाले कायाकल्प और रूपांतरण की प्रक्रियाओं को अदृश्य संसार से दृश्यमान जगत में लाने का भगीरथी प्रयास को अपना लक्ष्य बना ले. ताकि उन अनगिन अंधेरी दुनियाओं के समक्ष उम्मीद के किसी दैदीप्यमान प्रकाशस्तंभ के अजस्त्र स्रोत के रूप मे उन उदाहरणों को रख पाने मे सफ़ल हो सके. ताकि लोग इस बात को जान समझ ले कि रूकी और थमी जिंदगियों का सफ़र बंद अंधेरी गलियों से निकलकर कई बार जगमगाती झिलमिलाती हुई राजमार्गों तक भी पहुंच सकता है.